Elon Musk ने सिर्फ एक ट्वीट से क्रिप्टो बॉट्स पर किया बड़ा हमला
माइक्रोब्लॉगिंग साइट Twitter को खरीदने के बाद बिलिनेयर Elon Musk ने बॉट्स को हटाने के लिए कोशिशें शुरू कर दी हैं। वह ट्विटर को क्रिप्टो बॉट्स से छुटकारा दिलाने का इरादा जाहिर करते रहे हैं। मस्क ने पिछले सप्ताह के अंत में एक ट्वीट कर क्रिप्टो बॉट एक्टिविटिज के खिलाफ चेतावनी दी थी।
इसके बाद ट्विटर पर बॉट की एक्टिविटीज में कमी आई है। मस्क इन बॉट्स को ट्विटर से पूरी तरह हटाने की योजना बना रहे हैं क्योंकि इनसे स्कैम का खतरा बढ़ जाता है। मस्क ने कहा कि ट्विटर पर कुछ लोग बॉट्स और ट्रोल एकाउंट्स चला रहे हैं और उनके IP एड्रेस की जल्द ही पहचान की जाएगी। लोकप्रिय मीम कॉइन्स में से एक Dogecoin के को-फाउंडर ने बताया है कि मस्क के ट्वीट के जरिए चेतावनी देने के बाद बॉट की एक्टविटीज में कमी हुई है। उन्होंने इलेक्ट्रिक कार मेकर Tesla के चीफ मस्क की इसके लिए प्रशंसा की। एक क्रिप्टो इंटेलिजेंस फर्म ने कुछ महीने पहले दावा किया था कि ट्विटर पर पिछले तीन वर्षों में स्पैम की वॉल्यूम 1,374 प्रतिशत बढ़ी है।
हाल ही में एक सायबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट ने कहा था कि ट्विटर पर क्रिप्टो कम्युनिटी से जुड़े लोगों की सुरक्षा को खतरा है। उन्होंने बताया था कि हैकर्स फिशिंग स्कैम्स का शिकार बने लोगों की मदद करने के बहाने उन्हें दोबारा ठग रहे हैं। ये हैकर्स ब्लॉकचेन डिवेलपर्स होने का दावा करते हैं और चुराए गए फंड की रिकवरी के लिए स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट के इस्तेमाल की फीस मांगते हैं। इसके बाद वे फीस लेकर गायब हो जाते हैं।
पिछले महीने अमेरिका में Republican पार्टी का प्रचार करने के लिए मस्क के ट्विटर का इस्तेमाल करने को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। मस्क ने अमेरिका के मध्यावधि चुनाव के लिए मतदाताओं से ट्विटर पर रिपब्लिकन पार्टी को वोट देने की अपील की थी। टेक कंपनियों के सीनियर एग्जिक्यूटिव्स राजनीतिक बहस से दूर रहते हैं जिससे उनकी कंपनियों पर किसी विशेष राजनीतिक दल का पक्ष लेने का आरोप न लगे। मस्क इससे पहले भी अपने राजनीतिक विचार बताते रहे हैं। हालांकि, उनके इस बार एक पार्टी का सीधे समर्थन करने से ट्विटर के निष्पक्ष रहने की क्षमता पर सवाल उठे थे। मस्क ने ट्वीट कर कहा था, “प्रेसिडेंट के डेमोक्रेटिक होने के कारण मैं रिपब्लिकन पार्टी के लिए मतदान करने की सलाह देता हूं।” मस्क इससे पहले अमेरिकी सरकार के खिलाफ टिप्पणी कर चुके हैं।
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पांच साल बाद भी नहीं मिले चाचा भतीजा के दिल, अखिलेश के खिलाफ शिवपाल ने किया ये बड़ा फैसला
लखनऊ: समाजवादी पार्टी का वारिस बनने के मुद्दे पर मुलायम सिंह यादव कुनबे में 5 साल पहले शुरू हुई राजनीतिक अदावत अब भी जारी है. शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) ने सपा के नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक में नहीं बुलाए जाने से नाराज होकर फिलहाल शपथ ग्रहण करने से इनकार कर दिया है. चर्चाओं के मुताबिक वे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की ओर से बुलाई गई सहयोगी दलों के नेताओं की बैठक में भी शामिल नहीं होंगे.
अखिलेश ने बुलाई थी पार्टी विधायकों की बैठक
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाल ही में यूपी असेंबली का चुनाव जीतने वाले पार्टी के विधायकों की बैठक बुलाई थी. इस बैठक में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को पार्टी के विधायक दल का नेता चुना गया. शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) इस बैठक के बाद से अखिलेश यादव पर भड़के हुए हैं. उनका कहना है कि वे जसवंत नगर सीट से एसपी के टिकट पर जीते हैं, इसलिए उन्हें भी इस बैठक में बुलाया जाना चाहिए था.
सपा ने शिवपाल को न बुलाने पर दी ये सफाई
वहीं सपा हाई कमान का कहना है कि शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) भले ही सपा के सिंबल पर चुनाव जीते हैं. लेकिन वे मूलत सहयोगी दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं. इसलिए शिवपाल समेत सहयोगी दलों के फंड फाउंडर के क्रिप्टो एक्सपर्ट टिप्स किसी भी नेता को इस बैठक में नहीं बुलाया गया. पार्टी ने कहा कि सहयोगी पार्टियों के नेताओं की बैठक बाद में बुलाई जाएगी.
अपमानित महसूस कर रहे प्रसपा प्रमुख
हालांकि सपा की इस सफाई का शिवपाल यादव (Shivpal Singh Yadav) पर कोई असर नहीं पड़ा है. उन्हें लग रहा है कि अखिलेश यादव के इशारे पर उन्हें नीचा दिखाने के लिए जानबूझकर यह कदम उठाया गया है. इसलिए उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए फिलहाल यूपी असेंबली में विधायक पद की शपथ न लेने फंड फाउंडर के क्रिप्टो एक्सपर्ट टिप्स का फैसला किया है. सूत्रों के मुताबिक वे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की ओर से बुलाई जाने वाली सहयोगी दलों की बैठक में भी शामिल नहीं होंगे.
मुलायम सिंह के छोटे भाई हैं शिवपाल यादव
बताते चलें कि शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई हैं. मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में वे पार्टी में नंबर-2 माने जाते थे. वर्ष 2012 में जब सपा सत्ता में आई तो शिवपाल सिंह यादव खुद को इसका दावेदार मान रहे थे. हालांकि मुलायम सिंह यादव ने पार्टी में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के पक्ष में माहौल बनाकर उन्हें सीएम फंड फाउंडर के क्रिप्टो एक्सपर्ट टिप्स बनवा दिया. जिससे शिवपाल सीएम पद की रेस में पीछे छूट गए.
रामगोपाल यादव से रही है खासी तल्खी
दोनों में राजनीतिक तल्खी वर्ष 2017 में उस समय बढ़ गई, जब सपा असेंबली का चुनाव हार गई. इसके बाद पार्टी के एक हलके में शिवपाल सिंह यादव को पार्टी में अहम भूमिका देने की मांग तेज हुई. उसी दौरान मुलायम सिंह यादव के चचेरे भाई और सांसद प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने अखिलेश यादव को पार्टी अध्यक्ष बनाने का बीड़ा उठाते हुए अभियान छेड़ दिया. पार्टी में बदले माहौल का फायदा उठाते हुए अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने खुद को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुलायम सिंह यादव को पार्टी संरक्षक घोषित कर दिया.
2018 में बना लिया अपना अलग दल
उसके बाद शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) के सामने कोई रास्ता नहीं बचा, जिसके चलते उन्होंने 2018 में अपना अलग दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली. इसके बाद दोनों दलों को 2019 के संसदीय चुनावों में फिर करारी हार झेलनी पड़ी. जिसके चलते चाचा-भतीजा को एक करने के लिए परिवार में कोशिश शुरू हुई. मान-मनौव्वल के बाद अखिलेश यादव ने 2022 के चुनाव में शिवपाल सिंह यादव की पार्टी के साथ गठबंधन किया लेकिन प्रदेश में केवल एक सीट दी गई. जसवंतनगर की इस सीट पर भी फंड फाउंडर के क्रिप्टो एक्सपर्ट टिप्स शिवपाल सिंह यादव को सपा के सिंबल पर चुनाव में उतारा गया.
कोई बड़ा फैसला ले सकते फंड फाउंडर के क्रिप्टो एक्सपर्ट टिप्स हैं शिवपाल
अब पार्टी सिंबल पर जीतने के बावजूद अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने चाचा शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) को फिर से किनारे कर दिया है. जिससे उनकी नाराजगी और बढ़ गई है. माना जा रहा है कि आने वाले वक्त में वे भी अपर्णा यादव की तरह अखिलेश यादव के खिलाफ कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं. जिसका खामियाजा सपा और अखिलेश यादव को भुगतना होगा.
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