बलबन का इतिहास

बलबन का इतिहास :- बलबन का इतिहास मध्यकालीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण भाग है | गयासुद्दीन बलबन का वास्तविक नाम बहाउद्दीन था | गयासुद्दीन बलबन बहुत ही न्यायप्रिय शासक था | बलबन इल्बरी तुर्क जाती से सम्बन्ध रखता था | बलबन के पिता उच्च जाती के सरदार थे | बलबन को बचपन में ही मंगोलो ने उठा कर बग़दाद की गुलाम मंडी में बेच दिया था | बलबन का शरीर बहुत ही सुडौल और स्वस्थ था जब सुल्तान इल्तुतमिश की नजर बलबन पर पड़ी तो उसे बलबन पर दया आ गयी तब उसने बलबन को दास के रूप में मोल ले लिया और भारतवर्ष आ गया | बलबन बहुत ही स्वामिभक्त निकला , इल्तुतमिश ने बलबन की स्वामिभक्ति देखकर बहुत ज्यादा प्रसन्न हुए तथा सुल्तान ने बलबन को चहलगानी दल में शामिल कर लिया | बलबन की उनत्ति दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की होने लगी |

रजिया सुल्तान के शासनकाल में उसकी नियुक्ति अमीरे शिकार के पद पर हुई | बहरामशाह ने बलबन को रेवाड़ी तथा हांसी क्षेत्र प्रदान किया | यह गुलाम वंश का 9 वा शासक बना | इसने 1266 ईस्वी से 1287 ईस्वी तक शासन की बांगडोर संभाली |

बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नसीरुद्दीन महमूद से कर दिया था | नसीरुद्दीन महमूद की मृत्युं के पश्चात ही शासन की बांगडोर 1266 ईस्वी को बलबन के हाथों में आ गयी | सिंहासन पर वीराजमान होते ही बलबन ने गयासुद्दीन की उपाधि धारण की | इसके सुल्तान बनते ही अमीरों ने राज्य विद्रोह कर दिया परन्तु बलबन ने कूटनीति पूर्वक इस विद्रोह को कुचल दिया | उसने अपने सभी जनता के लिए बिना किसी भेदभाव के न्याय की व्यवस्था की शुरुआत की |

बलबन की राज्यव्यवस्था के सिद्धांत

बलवन ने उच्च गुणवत्ता वाली शासन व्यवस्था को अपनाने पर बल दिया | इसने कई नीतियां चलायी और कई कार्य भी किये | बलबन ने दैवीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया इस सिद्धांत के अनुसार सुल्तान की शक्ति का आधार जनता तथा आमिर नहीं है | बलबन ने जिल्ले इलाही की उपाधि धारण की |

बलबन के कथन था की मैं जब भी किसी छोटे कुल के व्यक्ति को देखता हूँ तो क्रोधित होकर मेरा हाथ अपनेआप तलवार पर चला जाता है | बलबन अपने आप को शाही वंशज होने का दावा करता था बिंगबन विनियमित है? | उसने अपने अपने आप को फिरदौसी रचित पुस्तक शाहनामा में लिखित अफरासियाब वंश का वंशज बताता था | बलबन ने ईरानी आदर्शो और ईरानी परम्पराओं का समर्थन किया और अपने राजदरबार में इसको स्थापित किया | इसने सिजदा तथा पाबोस प्रथा की शुरुआत की | बलबन ने ईरानी त्यौहार नवरोज उत्सव की शुरुआत की |

बलबन ने चालीसा दल जोकि अमीर वर्ग का एक शक्तिशाली संगठन था उसको विघटित कर दिया क्योंकि इस शक्तिशाली सगठन उनका राज्य वयवस्था को चलाने में व्यवधान उत्पन्न कर रहे थे | इस संगठन के समर्पित व्यक्तियों को बलबन जनता के समक्ष कमजोर बताता था और इस दल के कुछ लोगों की बलबन ने हत्या भी करवा दिया | बलबन ने पूर्णरूपेण इस चालीसा दल को सफलतापूर्वक दमन कर दिया था |

बलबन के गुप्तचर विभाग का निर्माण

बलबन ने अपनी राज्य शासन व्यवस्था को चलाने को नियमित रूप से चलाने के लिए गुप्तचर विभाग की स्थापना की | जो की राज्य शासन व्यवस्था को चलाने के लिए इस विभाग के कार्य सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण थे | बलबन के द्वारा प्रत्येक सरकारी विभाग , प्रत्येक जिले और प्रत्येक प्रांतों में गुप्तचर विभाग में अधिकारीयों की नियुक्ति की गयी | इसके लिए सभी गुप्तचर अधिकारीयों को अच्छी वेतन के साथ अच्छी सुख – सुविधाएँ भी प्रदान की जाती थी | बलबन ने अपने शासन व्यवस्था के बीच व्यवधान उत्पन्न करने वाले विद्रोहियों का भी सफलतापूर्वक दमन किया | जिससे उसके राज्य की शासन व्यवस्था सुदृढ़ होती चली गयी |

बलबन की न्याय व्यवस्था

बलबन एक बहुत ही न्याय प्रिय शासक था | उसके राज्य में किसी भी व्यक्ति के साथ भेद भाव नहीं किया जाता था | बलबन किसी भी व्यक्ति के साथ गैर-पक्षपातपूर्ण न्याय करता था | उसके शासनकाल में अपराधियों को दंड देने की व्यवस्था बहुत ही कठोर एवं बर्बरतापूर्ण था | बलबन किसी भी जघन्य अपराधों का न्याय खुद से करता था | बलबन की शासन व्यवस्था का आधार लौह एवं रक्त की निति थी अर्थात जो व्यक्ति विद्रोह करता था उसकी हत्या करके उसकी पत्नी और बच्चो को गुलाम बना लिया जाता था |

बलबन की मृत्यु 1286 ईस्वी में हो गयी | बरनी के कथानुसार बलबन की मृत्यु से दुखी हुए मलिकों ने अपने कपड़े फार दिए , नंगे पैर कब्रिस्तान जाते समय सर पर धुल डालें तथा उनकी मृत्यु की शोक में 40 दिनों का उपवास भी रखा | बलबन की मृत्यु होते ही कुछ ही वर्षों में बलबन के द्वारा बनायीं गयी मान मर्यादा और पद प्रतिष्ठा समाप्त हो गयी |

बलबन के शासन प्रबंध का वर्णन कीजिए,

तो हेल्लो स्टूडेंट्स आज हम बलबन की शासन व्यवस्था के बारे में चर्चा करेंगे। इसके पिछले पोस्ट में हमने बलबन की रक्त लौह नीति एवं बलबन का मूल्यांकन के बारे में चर्चा की थी, अगर इसके बारे में आपने नहीं पढ़ा तो इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं

बलबन ने शासक बनने के पश्चात अनुभव किया की उसके सामने अनेक समस्याएं मौजूद हैं| इसके निवरण के लिए बलबन ने सर्वप्रथम एक कठोर प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना की |

बलबन की शासन व्यवस्था

1. राजत्व संबंधी सिद्धांत -

बलबन के समक्ष सर्वप्रथम कार्य सुल्तान की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करना था। बलबन ने सल्तनत के विरोधी तत्वों का विनाश कर राजत्व के दैवीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इस सिद्धांत के अनुसार संतुलन को अपने ही ईश्वर का प्रतिनिधि माना, जिसकी तुलना जनसाधारण से नहीं की जा सकती थी। "राज्य की संपूर्ण शक्ति उसी में केंद्रित थी वह बड़ी कठोरता से अपनी आज्ञा का पालन करवाता था उसके पुत्र भी जो बड़े-बड़े प्रांतों के शासक थे उससे बिना पूछे कोई कार्य नहीं कर सकते थे। उसकी आज्ञाओं को अंतिम समझी जाती थी।"

2. चालीस मंडल का दमन-

इल्तुतमिश ने प्रशासनिक क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से 40 गुलामों को संगठित करके 40 मंडल बनाया था। यह अत्यंत राज भक्त और तन मन से सुल्तान की सेवा करते थे। इल्तुतमिश की मृत्यु के पश्चात इनकी महत्वकांक्षाएं बढ़ने लगी और इल्तुतमिश के निर्बल उत्तराधिकारीयों के समय में यह अत्यंत शक्तिशाली हो गए। सुल्तानों को बनाने व हटाने में भी वे भूमिका निभाने लगे।यह सदस्य अत्यंत स्वार्थी व अभिमानी हो गए थे तथा राजा को कठपुतली समझते थे। इसके फलस्वरूप बलबन ने इनका विनाश करने का निश्चय किया। बलबन ने इनका दमन करने व प्रजा की दृष्टि में गिराने के लिए साधारण अपराधों के लिए भी उन्हें कठोर दंड दिया जाने लगा। कुछ कूटनीति के द्वारा तथा शेष विश देकर सफाया कराया गया। इस प्रकार बलबन ने कठोर एवं बर्बर तरीकों से 40 मंडल का दमन किया।

3. उलमा की उपेक्षा -

तुर्की राज संस्था धर्म प्रधान थी।जिसमें उलमा का विशेष स्थान था। उलमा का दिल्ली की राजनीति पर गहरा प्रभाव था। किंतु उलमा के अनेक सदस्य भ्रष्ट हो चुके थे और राजनीति को दूषित कर रहे थे। बलबन ने ऐसे चरित्र भ्रष्ट धर्म नेता को राजनीति से अलग कर दिया। बलबन उलमा का सम्मान करता था और उनसे परामर्श लेता था। परंतु केवल धार्मिक मामलों में, राजनीतिक में उलमा से हस्तक्षेप करने के अधिकार को छीन लिया था।

4. सुदृढ़ केंद्रीय शासन-

केंद्रीय शासन को सुदृढ़ बनाना बलबन आवश्यक समझता था। क्योंकि उसी समय प्रांतीय राज्यों पर भी अंकुश लगाया जा रहा था। यद्यपि बलबन के केंद्रीय शासन के विभिन्न विभागों के विषय में निश्चित जानकारी नहीं प्राप्त होती थी। किंतु पहले के समान आरिज ए मुमालिक, दीवान ए इंशा, दीवान ए रसालत व वजीर पद थे। नीति के निर्धारण का कार्य स्वयं बलबन ही करता था। बलबन ने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि किसी निम्नवंशीय व अयोग्य व्यक्ति को उच्च पद पर नियुक्त न किया जाए।

प्रांतीय शासन की ओर बलबन विशेष ध्यान न दे सका इसी कारण उसे अपने शासनकाल में अनेक बार प्रांतीय शासकों के विद्रोह का सामना करना पड़ा।

5. हिंदुओं के प्रति नीति-

बलबन ने उलमा को राजनीति से बिंगबन विनियमित है? अलग कर दिया था लेकिन इससे हिंदू जनता की स्थिति पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ा। हिंदुओं की स्थिति सल्तनत काल में कभी भी अच्छी नहीं रही। हिंदुओं की स्थिति बलबन के शासन काल में भी अच्छी नहीं थी। बलबन के हिंदुओं के प्रति विचार बलबन ब्राह्मणों का बड़ा शत्रु था और उनको पूरा नष्ट करना चाहता था।

6. शक्तिशाली सेना-

बलबन अत्यंत योग्य शासक था। वह इस तथ्य से परिचित हो कि उसके साम्राज्य की सुरक्षा एवं विस्तार तभी संभव था जब उसके पास अत्यधिक शक्तिशाली सेना हो। उसने शक्तिशाली सेना संगठन की ओर विशेष ध्यान दिया। सेना का सर्वोच्च अधिकारी इमाद उल मुल्क को बनाया गया नवीन प्रकार के अस्त्र-शस्त्र को तैयार करवाया गया तथा सेना में भर्ती के कठोर नियम बनाए गए। इसकेअतिरिक्त बल बने एक अन्य प्रमुख कार्य भी किया कुतुबुद्दीन हुआ इल्तुतमिश ने अपने शासनकाल के दौरान उनके योद्धाओं को जागी रे दी थी तथा आवश्यकता पड़ने पर उनकी सहायता प्राप्त की जाती थी। बलबन ने इस प्रथा को बंद कर दिया तथा ऐसे जागीरों से जागीर छीन ली, इस नीति का उद्देश्य जागीर प्रथा के स्थान पर नगद वेतन देकर सैनिकों की भर्ती करना था सेना की शक्ति में वृद्धि करना आवश्यक समझा।

7. गुप्तचर व्यवस्था-

विशाल साम्राज्य पर निरंकुशता पूर्वक शासन करने के लिए सक्षम गुप्तचर व्यवस्था का होना अति आवश्यक है। बलबन ने कुछ गुप्तचर व्यवस्था की स्थापना की। गुप्ता व्यवस्था को कुशल बनाने के लिए बल बने अपार धन खर्च किया। सरकारी गुप्तचर देश के विभिन्न भागों में नियुक्त थे तथा वहां होने वाली प्रमुख घटनाओं की सूचना सुल्तान को भेजते थे। गुप्त चारों को आकर्षक वेतन दिया जाता था और उन्हें अन्य पदाधिकारी एवं सेना नायकों के अधिपत्य से मुक्त रखा जाता था। किसी गुप्तचर के द्वारा काम ठीक ना होने के कारण उसे कठोर दंड दिया जाता था। इस व्यवस्था से अपराध कम हुए तथा अधिकार प्राप्त लोगों के अत्याचारों से निर्दोष व्यक्तियों की रक्षा हुई।

8. न्याय व्यवस्था-

बलबन अत्यंत न्याय प्रिय शासक था इसलिए उसने निष्पक्ष न्याय व्यवस्था की स्थापना की। न्याय करते समय वह अमीर गरीब रिश्ते नाते आदि का ध्यान नहीं रखता था। अपराध करने पर वाह बड़े बड़े अधिकारी को दंडित करता था। उसका शासन शक्ति एवं न्याय के सद्गुणों पर आधारित था। बदायूं का मालिक एक शक्तिशाली अमीर था किंतु, जब उसने अपने बिंगबन विनियमित है? एक गुलाम को कोड़े से पिटवाकर मरवा डाला तो बलबन ने उसके साथ भी वैसा ही व्यवहार करवाया।

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