4. ज्ञातव्य है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले 9 साल में पहली बार सोना खरीदा है. इससे यह संकेत मिलता है कि आने वाले दिनों में सोने की मांग बढ़ सकती है.
इकोनॉमिस्ट्स ने कहा, विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ाने और रुपया में विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने गिरावट रोकने में बहुत सफल नहीं होंगे RBI के उपाय
RBI ने देश में विदेशी मुद्रा (Foreign Currency) की आवक बढ़ाने के जो उपाय किए हैं, उनका ज्यादा फायदा मिलने की उम्मीद नहीं है। इस वजह से डॉलर के मुकाबले रुपया के एक्सचेंज रेट पर इसका असर नहीं विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने पड़ेगा। इकोनॉमिस्ट्स ने मनीकंट्रोल को यह बात बताई है। पिछले कुछ समय से डॉलर के मुकाबले रुपया में लगातार कमजोरी आ रही है।
कोटक सिक्योरिटीज में करेंसी डेरिवेटिव के हेड विकास बजाज ने कहा, "हमने रुपया में कमजोरी आने पर इस तरह के उपाय पहले भी देखे हैं। इनका खास असर नहीं पड़ता है। हमें यह इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि करंट अकाउंट (बढ़ता व्यापार घाटा) और कैपिटल अकाउंट (पूंजी का देश से बाहर जाना) दोनों ही मोर्चों पर रुपया को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उधर, डॉलर को लेकर माहौल विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने काफी सपोर्टिव है और वित्तीय स्थितियां कठिन हो रही हैं।"
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उन्होंने कहा कि विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने विदेशी माहौल अनुकूल नहीं है जिससे आरबीआई के उपायों से छोटी अवधि में थोड़ा फायदा हो सकता है। लेकिन, इनसे रुपया की दिशा बदलने की उम्मीद कम है। मंगलवार को शुरुआती कारोबार में रुपया 80 के लेवल को पार कर गया।
RBI ने इस महीने की शुरुआत में देश में विदेशी करेंसी की आवक बढ़ाने के लिए कई उपायों का ऐलान किया था। उम्मीद थी कि इन उपायों से डॉलर के मुकाबले रुपया पर दबाव घटेगा। इनमें बैंकों को नॉन-रेजिडेंट्स इंडियंस से विदेशी मुद्रा जुटाने के लिए ज्यादा आजादी दी गई थी। सरकारी और प्राइवेट विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने कंपनियों के बॉन्ड में छोटी अवधि के लिए विदेशी इनवेस्टर्स के निवेश की सीमा हटा दी गई थी।
इकोनॉमिस्ट्स ने कहा, विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ाने और रुपया में गिरावट रोकने में बहुत सफल नहीं होंगे RBI के उपाय
RBI ने देश में विदेशी मुद्रा (Foreign Currency) की आवक बढ़ाने के जो उपाय किए हैं, उनका ज्यादा फायदा मिलने की उम्मीद नहीं है। इस वजह से डॉलर के मुकाबले रुपया के एक्सचेंज रेट पर इसका असर नहीं पड़ेगा। इकोनॉमिस्ट्स ने मनीकंट्रोल को यह बात बताई है। पिछले कुछ समय से डॉलर के मुकाबले रुपया में लगातार कमजोरी आ रही है।
कोटक सिक्योरिटीज में करेंसी डेरिवेटिव के हेड विकास बजाज ने कहा, "हमने रुपया में कमजोरी आने पर इस तरह के उपाय पहले भी देखे हैं। इनका खास असर नहीं पड़ता है। हमें यह इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि करंट अकाउंट (बढ़ता व्यापार घाटा) और कैपिटल अकाउंट (पूंजी का देश से बाहर जाना) दोनों ही मोर्चों पर रुपया को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उधर, डॉलर को लेकर माहौल काफी सपोर्टिव है और वित्तीय स्थितियां कठिन हो रही हैं।"
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RBI ने इस महीने की शुरुआत में देश में विदेशी करेंसी की आवक बढ़ाने के लिए कई उपायों का ऐलान किया था। उम्मीद थी कि इन उपायों से डॉलर के मुकाबले रुपया पर दबाव घटेगा। इनमें बैंकों को नॉन-रेजिडेंट्स इंडियंस से विदेशी मुद्रा जुटाने के लिए ज्यादा आजादी दी गई थी। सरकारी और प्राइवेट कंपनियों के बॉन्ड में छोटी अवधि के लिए विदेशी इनवेस्टर्स के निवेश की सीमा हटा दी गई थी।
भारतीय रिज़र्व बैंक सोना क्यों खरीदता है?
वित्त वर्ष 2017-18 की जून तिमाही में RBI ने 8.46 मीट्रिक टन सोना खरीदा है. इससे पहले RBI ने नवंबर 2009 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 200 मीट्रिक टन सोना खरीदा था. रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, अब उसके सोने का भंडार 566.23 मीट्रिक टन पहुंच गया है. इस लेख में बताया गया है कि RBI ने इस सोने की खरीद क्यों की है.
भारतीय रिज़र्व बैंक के अन्य कार्यों में विदेशी मुद्रा की रखवाली और मिनिमम रिज़र्व सिस्टम की मजबूती के लिए सोने की खरीद करता है. इसे बैंकों का बैंक और विदेशी मुद्रा का संरक्षक भी कहा जाता है. रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में उसके सोने का रिजर्व 612 टन तक पहुंच गया है.
ध्यान रहे कि रिज़र्व बैंक इस सोने को अपने विदेशी मुद्रा भंडार में रखता है. सितम्बर 2019 के पहले सप्ताह में रिज़र्व बैंक के पास कुल विदेशी मुद्रा भंडार 430 बिलियन डॉलर के पास पहुँच गया है.
लगातार 9वें हफ्ता घटा विदेशी मुद्रा भंडार, क्या होगा घटते रिजर्व का असर
देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का सिलसिला लगातार 9वें दिन भी जारी रहा है. गिरावट के साथ अब देश का भंडार 2 साल के निचले स्तरों पर पहुंच गया है. रिजर्व बैंक पहले ही कह चुका है कि देश के रिजर्व में आ रही गिरावट का अधिकांश हिस्सा एक्सचेंज रेट की वजह से है. डॉलर के मुकाबले रुपया फिलहाल रिकॉर्ड निचले स्तरों पर पहुंच गया है. रिजर्व में लगातार आ रही गिरावट की वजह से चिंताएं बढ़ी हैं. हालांकि रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने कह चुका है कि गिरावट के बावजूद विदेशी मुद्रा के मामले में भारत की स्थिति काफी विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने मजबूत है. जानिए अगर रिजर्व एक सीमा से ज्यादा गिरता है तो अर्थव्यवस्था पर इसका विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने क्या असर पड़ता है.
कहां पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार
देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने सिलसिला जारी रहने के बीच 30 सितंबर को समाप्त सप्ताह में यह 4.854 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने घटकर 532.664 अरब डॉलर रह गया है. भंडार इससे पिछले सप्ताह में 8.134 अरब डॉलर कम होकर 537.518 अरब डॉलर पर रहा था. माना जा रहा है कि डॉलर के मुकाबले रुपये दर में गिरावट को रोकने के जारी प्रयासों के बीच विदेशी मुद्रा भंडार में यह कमी आई है. देश की विदेशी मुद्रा भंडार अक्टूबर 2021 में 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था.
आरबीआई की तरफ से शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा आस्तियों (एफसीए) में गिरावट के कारण 30 सितंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है. एफसीए दरअसल पूरे भंडार का एक प्रमुख हिस्सा होता है. केंद्रीय बैंक ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान एफसीए 4.406 अरब डॉलर घटकर 472.807 अरब डॉलर रह गया. डॉलर के संदर्भ में एफसीए में विदेशी मुद्रा भंडार में रखे गए यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्राओं में वृद्धि या मूल्यह्रास का प्रभाव शामिल है.
क्या है कमजोर रिजर्व का असर
उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए घटता हुआ विदेशी मुद्रा भंडार बेहद चिंता का विषय है.दरअसल विदेशी मुद्रा की मदद से केंद्रीय बैंक घरेलू करंसी में तेज गिरावट के नियंत्रित कर सकते हैं. जब उतार-चढ़ाव का दौर रहता है तो तेज गिरावट की स्थिति में बैंक अपने भंडार का इस्तेमाल कर करंसी को संभाल सकते हैं. इससे अनिश्चितता के बीच करंसी को नियंत्रित दायरे में रखा जा सकता है. और आयात बिल देश के नियंत्रण में रहता है. हालांकि रिजर्व घटने ये क्षमता खत्म हो जाती है और करंसी में तेज गिरावट अर्थव्यवस्था में दबाव बढ़ा देती है.
वहीं मजबूत रिजर्व से विदेशी कारोबारियों और निवेशकों के बीच अर्थव्यवस्था को लेकर भरोसा बढ़ता है. क्योंकि इससे संकेत जाता है कि अर्थव्यवस्था किसी छोटे मोटे झटके को आसानी से सहन कर सकती है. मजबूत रिजर्व विदेशी निवेश बढ़ाने और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों का भरोसा जीतने में काफी मददगार साबित होता है. ऐसे जितने भी देश जिनका भंडार खत्म होने के करीब पहुंच गये हैं वहां से न केवल निवेशकों ने दूरी बना ली है साथ ही क्रेडिट रेटिंग विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने घटने से नए कर्ज जुटाने में भी समस्या आ रही हैं.
क्या है कमजोर रिजर्व का असर
उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए घटता हुआ विदेशी मुद्रा भंडार बेहद चिंता का विषय है.दरअसल विदेशी मुद्रा की मदद से केंद्रीय बैंक घरेलू करंसी में तेज गिरावट के नियंत्रित कर सकते हैं. जब उतार-चढ़ाव का दौर रहता है तो तेज गिरावट की स्थिति में बैंक अपने भंडार का इस्तेमाल कर करंसी को संभाल सकते हैं. इससे अनिश्चितता के बीच करंसी को नियंत्रित दायरे में रखा जा सकता है. और आयात बिल देश के नियंत्रण में रहता है. हालांकि रिजर्व घटने ये क्षमता खत्म हो जाती है और करंसी में तेज गिरावट अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने दबाव बढ़ा देती है.
वहीं मजबूत रिजर्व से विदेशी कारोबारियों और निवेशकों के बीच अर्थव्यवस्था को लेकर भरोसा बढ़ता है. क्योंकि इससे संकेत जाता है कि अर्थव्यवस्था किसी छोटे मोटे झटके को आसानी से सहन कर सकती है. मजबूत रिजर्व विदेशी निवेश बढ़ाने और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों का भरोसा जीतने में काफी मददगार साबित होता है. ऐसे जितने भी देश जिनका भंडार खत्म होने के करीब पहुंच गये हैं वहां से न केवल निवेशकों ने दूरी बना ली है साथ ही क्रेडिट रेटिंग घटने से नए कर्ज जुटाने में भी समस्या आ रही हैं.
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