JK Tyre ने 6-7% बढ़ाईं टायर की कीमतें, मार्जिन बचाने के लिए अब शुरू की अगली बढ़ोतरी की तैयारी
जेके टायर एंड इंडस्ट्रीज के प्रेसिडेंट (इंडिया) अनुज कथुरिया ने कहा, पिछले 18 महीने के दौरान कमोडिटी की कीमतों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी के मार्जिन और प्रॉफिट में क्या अंतर है चलते कंपनी के लिए इनपुट कॉस्ट का बोझ लगभग 30-35 फीसदी बढ़ गया है
JK Tyre Industries : वित्त वर्ष 23 की पहली मार्जिन और प्रॉफिट में क्या अंतर है तिमाही के दौरान प्रॉफिट में कमी के बाद जेके टायर एंड इंडस्ट्रीज ने मार्जिन को सपोर्ट देने के लिए अपने टायरों की कीमतों में 6-7 फीसदी की बढ़ोतरी का फैसला किया है। अप्रैल-जून तिमाही के दौरान टायर कंपनी का कंसॉलिडेटेड नेट प्रॉफिट 20 फीसदी कम हो गया था। कंपनी को कच्चे माल पर खर्च बढ़ने से झटका लगा था।
कमोडिटी की कीमतें बढ़ने से लगा झटका
जेके टायर एंड इंडस्ट्रीज के प्रेसिडेंट (इंडिया) अनुज कथुरिया ने कहा, पिछले 18 महीने के दौरान कमोडिटी की कीमतों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी के चलते कंपनी के लिए इनपुट कॉस्ट का बोझ लगभग 30-35 फीसदी बढ़ गया है। कंपनी कॉस्ट का बोझ कस्टमर्स पर डाल रही है।
Break Even Point
दूसरे तरीके से कहें तो ब्रेकइवन प्वॉइंट वह उत्पादन स्तर होता है, जिसमें किसी उत्पाद का कुल रेवेन्यू कुल खर्च के बराबर होता है।
दूसरी तरफ, अगर इसे किसी पुट ऑप्शन पर लागू किया जाए तो ब्रेकइवन प्वॉइंट की गणना 100 डॉलर स्ट्राइक मूल्य माइनस अदा किया गया 10 डाॅलर प्रीमियम अर्थात 90 डाॅलर होगी। स्टाॅक मार्केट के ब्रेकइवन प्वॉइंट को ऐसे समझा जा सकता है कि मान लीजिए किसी निवेशक ने माइक्रोसॉफ्ट स्टॉक 110 डॉलर में खरीदा। यह व्यापार का उनका ब्रेकइवन प्वॉइंट है। अगर इसकी कीमत 110 डॉलर से अधिक होगी तो निवेशक लाभ कमाएगा और अगर इसकी कीमत 110 डॉलर से नीचे है तो वह नुकसान में रहेगा।
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दवाओं में कहां कितना मार्जिन
दवाकंपनियों की होलसेल रेट और एमआरपी के बीच काफी अंतर है। मलेरिया बीमारी के इलाज के लिए रेफीथर इंजेक्शन मार्जिन और प्रॉफिट में क्या अंतर है की एमआरपी 72.50 रुपए है, लेकिन होलसेल में ये 21 रुपए में आसानी से मिल जाता है। होलसेल और मेडिकल स्टोर के रेट में 50 रुपए की सीधी बढ़ोतरी हो जाती है। कुछ मरीजों की शिकायत पर डीबी स्टार ने पड़ताल की। कई डाक्टरों की लिखी दवा अनेक मेडिकल स्टोरों पर तलाशी, लेकिन यह दवा डाक्टर के चेंबर के आसपास की कुछ निश्चित मेडिकल स्टोर पर ही मिली। जिले में ऐसा एक डाक्टर की पर्ची पर नहीं हो रहा है। दर्जनों डाक्टर दो-तीन वर्षों से मरीजों के साथ कुछ इसी प्रकार की सुनियोजित प्रैक्टिस कर रहे हैं। हालांकि कुछ डाक्टर कमीशन के लोभ में पड़कर मरीजों के साथ ऐसी हरकत कर रहे हैं। जबकि दूसरी ओर मरीजों की पर्ची पर लिखी गई जांच में भी कई प्रकार की अनियमितताएं और कमीशन का खेल हैं। इन डाक्टरों की पर्ची पर लिखी जांच भी निश्चित लैब से ही कराने पर मान्य मार्जिन और प्रॉफिट में क्या अंतर है होती हैं। मरीज ने अपनी सुविधानुसार दूसरी लैब से जांच करा ली तो उसपर शामत जाती है। जांच रिपोर्ट को उक्त डाक्टर एक सिरे से खारिज कर दुबारा जांच कराने का आदेश देते हैं। इस प्रक्रिया में कई डाक्टर मरीजों को अपशब्द सुनाने से भी बाज नहीं आते हैं।
दवा का नाम एमआरपी होलसेल एमआर का रेट बीमारी
स्ट्रेपटोकिंस~900 700 रुपए 675 रुपए हार्ट अटैक
लेरिनेट 232 मार्जिन और प्रॉफिट में क्या अंतर है रुपए 178 रुपए 70 रुपए मलेरिया
रेफीथर इंजेक्शन ~72.50 21.50 रुपए 19 रुपए मलेरिया
पिपजो 239 रुपए 100 रुपए 93 रुपए एंटीबायोटिक
मिकासिन ~500- 71 27 रुपए 25 रुपए एंटीबायोटिक
मोनोसेफ 1जीएम 64 रुपए 27 रुपए 24 रुपए एंटीबायोटिक
पेनटॉप आईबी 55 रुपए 26 रुपए 23 रुपए पेट संबंधी
आप यहां गलत गए यह दवा तो सिर्फ सरायढेला में चूना गोदाम के पास स्थित एक मेडिकल स्टोर पर ही मिलेगी। कई कंपनियां अब केवल डॉक्टर से सेटिंग कर केवल एक ही मेडिकल पर दवा रखवा देती हैं। र|ेशकुमार, दवा दुकान संचालक
यहतो चर्म रोग वाले डाक्टर का पर्चा है, यह दवा तो आपको सिर्फ बैंक मोड़ में डाक्टर साहब के चैंबर के पास स्थित मेडिकल स्टोर पर ही मिलेगी। यह कंपनी और कहीं दवा उपलब्ध ही नहीं कराती। आगे आप समझदार हो। दिनेशकुमार, दवा दुकान संचालक
एमआरआई में भी कमीशन: डॉक्टरोंकी हर इलाज के लिए एमआरआई लिखने की आदत हो गई है, क्योंकि एक एमआरआई कराने पर मरीज की जेब से 5000 रुपए से ज्यादा खर्च होते हैं, जबकि इसमें डॉक्टर का कमीशन ~2000 से 3000 होता है। इसी तरह अल्ट्रासाउंड कराने पर मरीज को 500 से 600 रुपए देना पड़ते हैं, जबकि चेरिटेबल संस्थाओं में 300 से 350 रुपए लगते हैं। इसमें डॉक्टर का कमीशन 250 से 350 रुपए तक होता है।
दवा का फार्मूला हर मेडिकल स्टोर पर उपलब्ध होना चाहिए, जिससे मरीज किसी भी स्टोर से दवा खरीद सके। डॉक्टर की लिखी दवा अगर एक ही स्टोर पर मिल रही है, तो यह गलत है। सरकार को इस और ठोस कदम उठाना चाहिए, साथ ही दवा की एमआरपी पर नियंत्रण जरूरी है। हर दवा पर तय कमीशन होना चाहिए। इससे होलसेलर, रिटेलर को समान मुनाफा हो और मरीज को भी सही दाम पर दवा मिल सके।
सुरेंद्र ठक्कर, संरक्षक, धनबाद केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसो.
दवा कंपनी एमआर को डॉक्टरों के पास पहुंचाती हैं। एमआर अपनी दवा के बारे में ज्यादा बताने के साथ-साथ स्कीम का लालच डॉक्टर को दे आते हैं। यहीं से डॉक्टरों की मार्जिन और प्रॉफिट में क्या अंतर है कमाई और मरीज का पैसा खर्च होना शुरू हो जाता है। एक बार डाक्टर से सेटिंग हो जाने के बाद डाक्टर के निर्देश पर उनकी बताई गई दुकान पर दवा की बिलिंग होलसेलर से करा दी जाती है। इसके अलावा कुछ दवा कंपनी अलग तरीके से भी डाक्टर को मैनेज करती है। जिसमें कोई एमआर होता है और ही कंपनी की दवा का होलसेलर। कंपनी से फ्रेंचाइजी लेकर एजेंट प्रोपगेंडा बेसिस पर जिले के बाजार में जाते है। ये एजेंट कुछ डाक्टरों से कमीशन तय कर दवा की उनके नर्सिंग होम के नाम पर कंपनी से सीधे तौर पर बिलिंग कराते हैं। ऐसी दवाइयों का मार्जिन 300-400 प्रतिशत तक होता है। इसके उपरांत मरीजों की पर्ची पर उक्त दवा लिखे जाने पर स्वाभाविक है कि वह किसी भी दवा दुकान में नहीं मिलेगी। जबकि डाक्टर वैसी दवाओं का अपनी क्लीनिक में या फिर आसपास के किसी निश्चित दुकान में स्टॉक मुहैया करा कर बिकवाते हैं।
दवा कंपनियों ने डॉक्टरों से सीधे साठगांठ कर दवाओं की बिक्री शुरू कर दी है। अब डॉक्टर सीधे ही मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी से दवा मंगाकर नजदीक के मेडिकल स्टोर से बिक्री करा रहे हैं। ये दवाएं जिले में मौजूद अन्य किसी मेडिकल स्टोर पर नहीं मिलती हैं। मरीज को थक-हारकर डॉक्टरों की सेटिंग वाले मेडिकल स्टोर से दवा लेनी पड़ती है। हार्ट, किडनी, मलेरिया सहित अन्य बीमारियों की दवा और इंजेक्शन में डॉक्टर 50 से लेकर 500 रुपए तक कमीशन कमा रहे हैं। ऐसा करनेवाले डाक्टरों की संख्या सीमित है। जबकि कई डाक्टर इस कमीशन के खेल से बिल्कुल अलग भी हैं।
कारोबार : मुनाफा निचले स्तर पर | EDITORIAL by Rakesh Dubey
देश में कारोबारी जगत के नाम “कमजोर प्रदर्शन” लिखा जा चुका है,पिछले 5 मार्जिन और प्रॉफिट में क्या अंतर है मार्जिन और प्रॉफिट में क्या अंतर है मार्जिन और प्रॉफिट में क्या अंतर है सालों में। बीते पांच वर्ष में आय में वृद्धि बमुश्किल 5 प्रतिशत दर्ज की गई। इसने न केवल अनुमानों को झुठलाया बल्कि निवेशकों को भी हताश किया। हर निवेशक यह सुनकर थक चुका है कि जीडीपी और कारोबारी मुनाफे का अनुपात कितना गिर चुका है और देश के कारोबारी जगत का मुनाफा कितने निचले स्तर पर है।
नीतिगत प्रस्तुतियां भी पांच साल की अवधि में कमजोर पड़ते मुनाफे को दोबारा पटरी पर नहीं ला सकी । अब अनुमान लगाया जा रहा है कि व्यापक बाजार की समेकित सालाना वृद्घि दर (सीएजीआर) आय वृद्घि २० प्रतिशत रहेगी। वैसे पिछले पांच वर्षों के दौरान हर वर्ष ये अनुमान लगाये जाते रहे और कोई सफलता नहीं मिल सकी। हर वर्ष आय के अनुमानों को कम करना पड़ा। आंकड़ों में भारी कटौती करनी पड़ी। कई मामलों में तो यह कटौती काफी भारी थी। कई निवेशक हताश होने लगे। कुछ ने कहा कि अब वे आय में सुधार पर तभी यकीन करेंगे जब उनको यह वाकई में नजर आएगा । भारतीय बाजार का मूल्यांकन केवल तभी तार्किक नजर आता है जब यह मान लिया जाए कि आय में सुधार और मुनाफा मार्जिन सामान्य हो जायेगा।
आम सहमति इस बात पर है कि २०२० में आय वृद्घि २० से २५ प्रतिशत के दायरे में रह सकती है। ये आंकड़े हासिल किये सकते हैं। यह एक बहुप्रतीक्षित और ताजा बदलाव होगा। वित्त वर्ष २०२० में आय वृद्घि का आधार कॉर्पोरेट बैंकों के मुनाफे में सुधार होगा। वित्त वर्ष २०२० में आय में चरणबद्घ वृद्घि का ५०-६० प्रतिशत हिस्सा कॉर्पोरेट बैंकों के मुनाफे में सुधार से आएगा। इनमें निजी और सरकारी दोनों तरह के बैंक शामिल हैं। चूंकि ये बैंक इस वित्त वर्ष के अंत तक अपने मार्जिन और प्रॉफिट में क्या अंतर है ऋण नुकसान की पहचान और उसकी प्रोविजनिंग दोनों कर चुके होंगे तो यह कहा जा सकता है कि ऋण की लागत कम होने के कारण मुनाफे में तेजी से सुधार होगा।
वार्धिक ऋण अंतराल में धीमापन आने और वित्त वर्ष २०१९ में अधिकांश बैंकों के कवरेज अनुपात के करीब ५० -६० प्रतिशत रहा | ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के जरिये फंसे हुए कर्ज के अधिकांश मामलों के निस्तारण के कारण वित्त वर्ष २०२० में मुनाफे के पथ पर वापसी हो सकती है। यह मुनाफा प्राप्त करने के लिए ऋण में भारी वृद्घि अथवा शुद्घ आय मार्जिन (एनआईएम) में विस्तार की जरूरत नहीं होगी। एक तार्किक अनुमान यह है कि ऋण की लागत ३०० आधार अंकों से गिरकर करीब १०० आधार अंक के अधिक सामान्य स्तर पर आ जाएगी। कॉर्पोरेट बैंकों के अलावा अन्य वित्तीय क्षेत्र भी वित्त वर्ष २०२० में चरणबद्घ मुनाफा वृद्घि का प्रदर्शन करेंगे। आईएलएफएस डिफॉल्ट के कारण वित्त वर्ष २०१९ की दूसरी छमाही में इन सभी वित्तीय क्षेत्रों पर नकदी संकट के चलते बहुत बुरा असर हुआ|
बीते कुछ महीनों में रुपये में १० प्रतिशत तक की कमजोरी आई है। इस गिरावट का लाभ भी वित्त वर्ष २०२० में आय में सुधार के रूप में नजर आने का अनुमान लगाया जा रहा है | चालू वर्ष में हेजिंग के चलते सुधरे हुए मुनाफे का पूर्ण वास्तवीकरण नहीं हो सका और प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति में बदलाव आया। रुपये का लाभ न केवल निर्यातकों को मिलेगा बल्कि आयात के विरुद्घ प्रतिस्पर्धा कर रही कंपनियों को भी इसका फायदा मिलेगा। आईटी सेवा क्षेत्र, जेनेरिक दवा निर्यातक और विनिर्मित वस्तुओं के निर्यातकों को इससे काफी लाभ हो सकता है। आईटी सेवा कंपनियों दो अंकों से अधिक की वृद्घि हासिल हो सकती है क्योंकि डिजिटल क्षेत्र में उनकी प्रतिस्पर्धी स्थिति में लगातार सुधार हो रहा है। दुनिया भर में आईटी क्षेत्र के व्यय में वृद्घि हो रही है और कंपनियों के मार्जिन और पूंजी आवंटन में लगातार सुधार देखने को मिल रहा है।
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