कानपुर ब्यूरो
Updated Sat, 14 Mar 2020 06:45 PM IST

लिक्विडिटी प्रदाताओं के प्रकार

The discourse on the separation of debt management and monetary management in India is nearly two decades old. The orthodox view favoured separation, as did the committee on capital account convertibility in 1996, because of the conflict of interest between monetary policy and debt management. Post the Asian financial crisis, after BimalJalan took over as governor of the RBI, the dominant belief shifted against such a separation of powers for several reasons. First, large fiscal deficits meant that the government borrowing programme did impinge on monetary policy, liquidity and the cost of credit for the private sector. Second, higher costs did not deter governments from borrowing more. Third, foreign exchange market volatility had implications for debt management. Fourth, there are also conflicts of interest between government as owner of banks and issuer of debt.

The finance minister has said that the government, along with the RBI, will now draw up a “detailed roadmap” for the setting up of the agency, which will be separated from the RBI to prevent conflicts of interest, as our central bank is both the regulator and a dealer in government securities. There is no evidence in India to suggest that either debt management or monetary management has been compromised by the RBI or that, as market regulator, its role has conflicted with its monetary operations in the money and government securities markets. One question that has to be addressed in the light of this evidence is: If it ain’t broke, why fix it?

Globally, the conventional view on separation has also been under challenge after the financial crisis. In 2010, Charles Goodhart pointed out that, with elevated debt levels, debt management could no longer be viewed as a routine function that could be delegated to a separate, independent body. Further, in the coming epoch of central banking, he argued, central banks should be encouraged to once again take up their earlier roles as managers of national debt. Even in the UK, there was serious parliamentary debate on shifting the debt office back to the Bank of England. It was ultimately decided not to unsettle the extant structures. Instead, it was decided that the two should लिक्विडिटी प्रदाताओं के प्रकार work in close coordination with each other.

Q. Why does the author say, “if it ain’t broke, why fix it?”

भारत में ऋण प्रबन्धन और मुद्रा प्रबन्धन के पृथक्करण का संवाद लगभग दो दशक पुराना है। परम्परागत दृष्टिकोण इसके पृथक्करण का समर्थक है जो वित्तीय नीति और मुद्रा नीति के बीच हितों के टकराव के कारण सन 1996 में पूँजीगत-खता विनिम्यता समिति का भी मत था। एशियाई वित्तीय संकट के पश्चात, जब बिमल जालान ने भारत के रिजर्व बैंक के गवर्नर का कार्यभार सम्भाला था तो उस समय का मुख्य दृष्टिकोण कई कारणों से इस प्रकार के पृथक्करण के इतर स्थानांरित हो गया था। प्रथम कारण यह था कि विशाल वित्तीय घाटे का अर्थ सरकार की ऋण योजना द्वारा मुद्रा नीति, तरलता और निजी क्षेत्र के लिए ऋण की लागत का अतिक्रमण होता। द्वितीय, उच्च लागत से सरकार द्वारा अधिक ऋण लेने पर रोक नहीं लगती। तृतीय, विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता से ऋण-प्रबन्धन में उलझनें आतीं। चतुर्थ, सरकार का बैंकों के स्वामित्व और ऋण प्रदाता के रूप में आपसी हितों का टकराव भी होता।

वित्त मंत्री ने कहा है कि सरकार रिजर्व बैंक के साथ मिलकर एक एजेंसी की स्थापना हेतु “विस्तृत रूपरेखा बनाएगी और हितों के टकराव को रोकने के लिए इसे रिजर्व बैंक से पृथक रखा जायेगा। चूंकि हमारे केन्द्रीय बैंक की दो भूमिकाएं हैं-एक नियामक और दूसरी सरकारी प्रतिभूतियों का वितरक। भारत में ऐसा कोई प्रमाण नही है कि रिजर्व बैंक ने ऋण प्रबन्धन या मुद्रा प्रबन्धन के बीच कभी कोई समझौता किया हो या बाजार के विनियामक के रूप में इसकी भूमिका का मुद्रा बाजार और सरकारी प्रतिभूति बाजार में मुद्रा संचालन की भूमिका से कभी कोई टकराव हुआ हो। इस प्रमाण के प्रकाश में एक प्रश्न जिसका उत्तर दिया जाना है, वह है: यदि इसमें खामी ही नहीं है तो इसे सुधारा क्यों जाये?

वैश्विक रूप से, विभाजन पर परम्परागत दृष्टिकोण को वितीय संकट के बाद से चुनौती मिल रही है। वर्ष 2010 में चार्ल्स गुडहार्ट ने संकेत किया था कि उच्च ऋण स्तर के साथ ऋण प्रबन्धन अब एक सामान्य कार्य नहीं रह गया है कि जिसे किसी पृथक, स्वतंत्र संस्था को सौंप दिया जाये। इसके अतिरिक्त, आने वाले केन्द्रीय बैंक के युग में, उसने तर्क प्रस्तुत किया कि केन्द्रीय बैंको को फिर से राष्ट्रीय ऋण के प्रबन्धन की भूमिका को हाथ में लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। यू.के. में भी ऋण कार्यालय को वापिस बैंक ऑफ़ इंग्लैंड को स्थानांतरित करने हेतु गम्भीर संसदीय चर्चा हुई थी। अंततोगत्वा, प्रचलित ढांचों को अस्थिर न करने का निर्णय लिया गया। इसके स्थान पर यह निर्णय लिया गया कि दोनों को एक-दूसरे के साथ गहन समन्वय के साथ कार्य करना चाहिए।

Q. लेखक क्यों कहता है कि, “यदि इसमें खामी ही नहीं है, तो इसे क्यों सुधारा जाये?"

लिक्विडिटी प्रदाताओं के प्रकार

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सही वार्षिकी योजना की ओर कैसे जाएँ।

क्या आप अपने अंतिम समय में नियमित तथा सुनिश्चित आय की खोज कर रहे हैं?

क्या आप अपने अंतिम समय में नियमित तथा सुनिश्चित आय की खोज कर रहे हैं? इसका उत्तर आपके द्वारा मेहनत से कमाये गये धन को किसी उपयुक्त वार्षिकी उत्पाद में निवेश करना हो सकता है? वास्तव में, ऐसे उत्पाद का डिजाइन विशेष रूप से लंबी अवधि की सेवा-निवृति आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया गया है। फिर भी, अन्य व्यौरे की ओर जाने से पहले, हम उत्पाद को समझने की कोशिश करें।

वार्षिकी योजनाएँ क्या है?

अधिकांश सामान्य प्रकार की वार्षिकी योजनाएँ, शुद्ध बीमा योजना के विपरीत कार्य करती है। किसी शुद्ध बीमा योजना में, जिसे सावधि बीमा योजना के नाम से भी जाना लिक्विडिटी प्रदाताओं के प्रकार जाता है, कोई व्यक्ति बीमा अवधि में किस्त का भुगतान करता है, और लाभकर्ता(अक्सर परिवार), पॉलिसी अवधि में बीमाधारक की मृत्यु हो जाने की स्थिति में, बीमा किया गया धन प्राप्त करता है। किसी वार्षिकी योजना में, संचय अवधि में यदि कोई व्यक्ति कुल किस्त या नियमित भुगतान कर देता है तो वह अपने पूरे जीवन काल में या पूर्व-निर्धारित नियत अवधि तक वह नियमित वेतन पाता/पाती है।

“जीवन बीमा परिवार की असहायता को पीछे छोड़कर ‘युवावस्था में मृत्यु’ लिक्विडिटी प्रदाताओं के प्रकार की वित्तीय जोखिम को कवर करती है, जबकि कोई वार्षिकी योजना ‘लंबे अवधि तक जीवन’ को आरामदायक जीवन व्यतीत करने के लिए पर्याप्त धन के बिना, वित्तीय जोखिम को कवर करती है,” ऐसा ओपेन वर्ल्ड मनी वित्तीय सेवाओं के संस्थापक तथा मुख्य मेंटर डॉ॰ P नंदगोपाल का कहना है।

अपनी विशेषताओं पर आधारित विभिन्न प्रकार के वार्षिकीयों का किस प्रकार चुनाव करें?

वार्षिकी योजनाएँ कई प्रकार के होते हैं। आवश्यक रूप में इसे लाभ की अवधि, लाभ की परिवर्तनशीलता तथा लाभ के कवरेज के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

यदि कोई व्यक्ति वार्षिकी योजना को तत्काल प्रारंभ करना चाहता है, तो उसे ‘तत्काल वार्षिकी योजना’ खरीदना चाहिए। यदि वह नियमित पेंशन बेतन निर्दिष्ट अवधि (सामान्यतः सेवा निवृत्ति के बाद) पर प्रारंभ करना चाहता है, तो उसे ‘डेफर्ड वार्षिकी योजना’ की ओर जाना चाहिए। यह विकल्प क्रय निर्णय के समय की आयु पर निर्भर करती है।

यदि उसने अपने कैरियर की शुरूआत हाल ही में किया है, और सेवा-निवृत्ति से काफी दूर है, तो डेफर्ड वार्षिकी योजना का चुनाव करना बुद्धिमानी होगा, क्योंकि उसे नियमित पेंशन भुगतान की तब तक आवश्यकता नहीं होगी जब तक कि वह मासिक बेतन प्राप्त कर रहा है। कोई तत्काल वार्षिकी खरीदना उसके लिए उपयुक्त होगा जो अभी सेवा-निवृत हुए हैं और अपने वेतन के स्थान पर नियमित आय की आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में, कोई व्यक्ति किसी प्रकार की राशी के बारे में सोच सकता है, जो कि उन्हें सेवा-निवृत्ति पर मिलता है, जैसे- तत्काल वार्षिकी को खरीदने के लिए ग्रेच्विटी या भविष्य निधि।

यदि वार्षिकी राशी स्थित राशी है, गारंटी या वगैर गारंटी के, तो इसे ‘स्थित वार्षिकी’ कहते हैं। यदि यह दिये गये निवेश के प्रदर्शन के आधार पर परिवर्तित होता है, तो यह ‘परिवर्तनशील वार्षिकी’ है।

“कम जोखिम लेने वाला कोई व्यक्ति स्थिर वार्षिकी का चुनाव कर सकता है, जहाँ प्रतिफल कम हो सकता है, जहाँ परिवर्तनशील वार्षिकी में, प्रतिफल बाजार के शर्तों के आधार पर परिवर्तित हो सकती है। अतः यहाँ उच्च जोखिम है, लेकिन बड़े प्रतिफल की भी संभावनाएँ हैं।

एक वार्षिकी योजना एक ही जीवन(जैसे-पति) या दो जीवन (पति और पत्नी) को कवर कर सकती है, जहाँ एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद दूसरा व्यक्ति जिंदगी भर वार्षिकी वेतन प्राप्त करता रहेगा/रहेगी। संयुक्त जीवन वार्षिकी के मामले में, वार्षिकी पहले प्राथमिक सदस्यों (जीवन बीमा किये गये) को दिया जाता है। प्राथमिक सदस्यों की मृत्यु के बाद, द्वितीय सदस्य (पति-पत्नी) को वार्षिकी मिलना जारी रहता है। द्वितीयक सदस्यों की मृत्यु के बाद, वार्षिकी बेतन बंद कर दी जाती है।

एक संयुक्त जीवन वार्षिकी खरीदने का लाभ यह है कि आपकी मृत्यु के बाद आपका वित्तीय आश्रित (पति-पत्नी) को बेतन मिलना जारी रहेगा, जबकि व्यक्तिगत जीवन वार्षिकी की स्थिति में आपके सहयोगी (पति-पत्नी) को आपके गुजर जाने के बाद नकद सहायता नहीं मिलेगी। फिर भी, यह देखा जाता है कि संयुक्त जीवन वार्षिकी की तुलना में एकल जीवन वार्षिकी में उच्च आय स्तर प्राप्त होता है। इसका कारण है कि यह आपके सहयोगी (पति-पत्नी) को आपकी मृत्यु की स्थिति में आय उपलब्ध नहीं कराती है। इसीलिए, एकक जीवन वार्षिकी उसके लिए उपयुक्त है, जिसका कोई वित्तीय आश्रित नहीं है।

आप जिस किसी विकल्प का चुनाव करते हैं, इसके अतिरिक्त भी कई वैकल्पिक लक्षण तथा लाभ है, जैसे- आंशिक निकासी सुविधा, निर्देशिका लाभ जिसे वार्षिकी योजनाओं में शामिल किया जा सकता है।

किसी वार्षिकी योजना के चुनाव के लिए मापदण्ड

किसी अन्य वित्तीय उत्पाद की तरह, वार्षिकी चुनाव के लिए मुख्य मापदंड है-
(a) सुरक्षा,
(b) प्रतिफल, और
(c) लिक्विडिटी

वार्षिकी में सुरक्षा पहलू सर्वोपरि है क्योंकि यह काफी लंबी अवधि का उत्पाद होता है। यदि कोई व्यक्ति किसी स्वीकृत वार्षिकी का चुनाव करता है तो वह बीमा कंपनी को भुगतान किये जाने किस्तों के माध्यम से सेवा-निवृत्ति से पहले तक, यानि लंबी अवधि तक अर्थात् 20-30 वर्षों तक नियमित लिक्विडिटी प्रदाताओं के प्रकार रूप से बचत करता रहेगा। सेवा-निवृत्ति पर वह आशा करेगा कि औसतन 20-30 वर्षों तक प्रतिफल जारी रहे।

“इसका तात्पर्य है कि वार्षिकी उपलब्धकर्ता देयराशी उपलब्ध कराने लिक्विडिटी प्रदाताओं के प्रकार की स्थिति में हो जो कि विभिन्न तथ्यों जैसे- अवधि बढ़ाने, ब्याज दर, घटाने, मुद्रास्फीति इत्यादि के कारण तत्काल परिवर्तित हो सकता है। इसलिए वार्षिकी उपलब्ध कराने लिक्विडिटी प्रदाताओं के प्रकार वाली कंपनी की संपन्नता महत्त्वपूर्ण होती है। कंपनी की जितनी अधिक वित्तीय दृढ़ता होती है, यह उतना ही बेहतर होती है,” ऐसा डॉ॰ नंदगोपाल का मानना है।

सुरक्षा के बाद, प्रतिफल एक मुख्य भूमिका निभाती है। क्योंकि वार्षिकी उत्पाद की अवधि काफी लंबी होती है, अधिकांश कंपनियाँ प्रतिफल देने के क्रम में रुढ़िवादी होती है। ये कंपनियाँ कुल प्रतिफल ग्राहकों को पास नहीं करती है, परंतु प्रतिफल का कुछ भाग अनिश्चितताओं को पूरा करने के उद्देश्य से अपने पास रख लेती है। यह रूढ़िवादी तरीका बुढ़े व्यक्तियों के लिए, जो कि जीवन-खर्च के लिए पूरी तरह से वार्षिकी वेतन पर आश्रित है, हानिकारक हो सकता है। ज्योंहि मुद्रा-स्फीति प्रतिफल, अल्प वार्षिकी वेतन का वास्तविक मूल्य किसी स्थिति में वित्तीय विपत्ति का कारण बनता है तो वे इसे बेहतर प्रदाता में परिवर्तित करने में कठिनाई महसूस करेगा।

किसी पेंशन पॉलिसी का चुनाव करते समय ध्यान में रखने के लिए लिक्विडिटी एक अन्य पहलू है। “जहाँ वार्षिकी उत्पाद अपने विस्तृत संरचना के कारण बहुत लिक्विडिटी प्रदाताओं के प्रकार अस्थित नहीं होता है और आवश्यकता पड़ने पर सावधि जमा, जीवन बीमा पॉलिसी या म्युचुवल फंड की तरह जमा नहीं हो सकता है, ऐसे में किसी वित्तीय संकट की संभावना भी हो सकती है जो कि ग्राहकों को ऐसे विकल्पों की ओर जाने के लिए विवश कर सकता है। नाजुक परिस्थिति में, आंशिक निकसी- जो कि सामान्यतः अनुमोदित नहीं होती है- की आवश्यकता तत्काल पड़ सकती है,” ऐसा डॉ॰ नंदगोपाल का कहना है।

सही वार्षिकी उत्पाद तक कैसे जाएँ?

विशेषज्ञों के लिक्विडिटी प्रदाताओं के प्रकार अनुसार, सबसे अच्छा तरीका है कि उत्पाद की गुणवत्ता या प्रोन्नति के लिए चलाये जा रहे वार्षिकी प्रदाता का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड देखें। उद्योग का ट्रैक रिकॉर्ड, पिछले वार्षिकी पर उपलब्ध कराया गया प्रतिफल और कंपनी की हाल का वित्तीय सामर्थ्य, कुछ कुख्य तथ्य हैं जिसके ऊपर किसी वार्षिकी उत्पाद की ओर जाने से पहले ध्यान दिया जा सकता है, ऐसा विशेषज्यों का मानना है।

सुरक्षा किटों के बिना ही दौड़ रहीं 10

Kanpur Bureau

कानपुर ब्यूरो
Updated Sat, 14 Mar 2020 06:45 PM IST

108, 102 ambulances running without safety kits

सुरक्षा किटों के बिना ही दौड़ रहीं 108, 102 एंबुलेंस
सेवा प्रदाता कंपनी लापरवाह, ईएमटी स्टाफ को प्रशिक्षण भी नहीं
एक ही ऑक्सीजन मास्क का इस्तेमाल, गाउन, सर्जिकल दस्ताने भी नहीं
संवाद न्यूज एजेंसी
फर्रुखाबाद। हर प्रकार के रोगियों को घर से छोटे और बड़े अस्पतालों तक ले जाने वाली 108 व 102 एंबुलेंसों के कर्मचारियों को न तो प्रशिक्षित किया गया है और न ही कोरोना सुरक्षा किटों से लैस हैं। सेवा प्रदाता कंपनी पूरी तरह लापरवाह बनी हुई है।
चीन से शुरू हुई कोरोना की आफत देश में भी पैर तेजी से पसार रही है। इसके बाद भी एंबुलेंस संचालक स्टाफ की सुरक्षा को लेकर सेवा प्रदाता कंपनी कतई गंभीर नहीं है। एंबुलेंस हर तरह के मरीजों को 24 घंटे लाने-ले जाने का काम करती हैं। बावजूद इसके एंबुलेंस स्टाफ को प्रशिक्षण तक नहीं दिया गया। जिले भर में चल रही 46 गाड़ियों में से किसी को भी सुरक्षा किटों से लैस तक नहीं किया गया। यहां सवाल उठता है कि यदि कोई कोरोना पॉजटिव मरीज को एंबुलेंस से देहात से जिला मुख्यालय तक लाया गया, तो संक्रमण फैलना स्वाभाविक है। ऐसे में अनजाने में यह वायरस अन्य मरीजों को भी अपनी गिरफ्त में ले सकता है।
एंबुलेंस यूनियन जिला उपाध्यक्ष सुखदेव सिंह ने बताया कि अभी तक कर्मियों को प्रशिक्षण नहीं मिला है। मास्क भी मानकयुक्त नहीं हैं। एक ही ऑक्सीजन मास्क से सभी को ऑक्सीजन दी जाती है। ट्रिपल लेयर, हाथ धुलने के लिए सेनेटाइजर, मास्क, गाउन, सर्जिकल दस्ताने, सर्जिकल कैप, बाल्टी, मग, वाशिंग पाउडर, हैंडवाश लिक्विड, फिनायल आदि भी नहीं है। बताया कि शनिवार को प्रोग्राम मैनेजर सौरभ ने एक मैसेज देकर कहा है कि कोई भी जुकाम-बुखार का मरीज हो, तो बिना स्वास्थ्य अधिकारी से वार्ता किए उसे कहीं न लेकर जाएं।


सेवा प्रदाता कंपनी लापरवाह, ईएमटी स्टाफ को प्रशिक्षण लिक्विडिटी प्रदाताओं के प्रकार भी नहीं
एक ही ऑक्सीजन मास्क का इस्तेमाल, गाउन, सर्जिकल दस्ताने भी नहीं
संवाद न्यूज एजेंसी
फर्रुखाबाद। हर प्रकार के रोगियों को घर से छोटे और बड़े अस्पतालों तक ले जाने वाली 108 व 102 एंबुलेंसों के कर्मचारियों को न तो प्रशिक्षित किया गया है और न ही कोरोना सुरक्षा किटों से लैस हैं। सेवा प्रदाता कंपनी पूरी तरह लापरवाह बनी हुई है।
चीन से शुरू हुई कोरोना की आफत देश में भी पैर तेजी से पसार रही है। इसके बाद भी एंबुलेंस संचालक स्टाफ की सुरक्षा को लेकर सेवा प्रदाता कंपनी कतई गंभीर नहीं है। एंबुलेंस हर तरह के मरीजों को 24 घंटे लाने-ले जाने का काम करती हैं। बावजूद इसके एंबुलेंस स्टाफ को प्रशिक्षण तक नहीं दिया गया। जिले भर में चल रही 46 गाड़ियों में से किसी को भी सुरक्षा किटों से लैस तक नहीं किया गया। यहां सवाल उठता है कि यदि कोई कोरोना पॉजटिव मरीज को एंबुलेंस से देहात से जिला मुख्यालय तक लाया गया, तो संक्रमण फैलना स्वाभाविक है। ऐसे में अनजाने में यह वायरस अन्य मरीजों को भी अपनी गिरफ्त में ले सकता है।


एंबुलेंस यूनियन जिला उपाध्यक्ष सुखदेव सिंह ने बताया कि अभी तक कर्मियों को प्रशिक्षण नहीं मिला है। मास्क भी मानकयुक्त नहीं हैं। एक ही ऑक्सीजन मास्क से सभी को ऑक्सीजन दी जाती है। ट्रिपल लेयर, हाथ धुलने के लिए सेनेटाइजर, मास्क, गाउन, सर्जिकल दस्ताने, सर्जिकल कैप, बाल्टी, मग, वाशिंग पाउडर, हैंडवाश लिक्विड, फिनायल आदि भी नहीं है। बताया कि शनिवार को प्रोग्राम मैनेजर सौरभ ने एक मैसेज देकर कहा है कि कोई भी जुकाम-बुखार का मरीज हो, तो बिना स्वास्थ्य अधिकारी से वार्ता किए उसे कहीं न लेकर जाएं।

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