विदेशी विनिमय बाजार के कार्य

विदेशी मुद्रा बाजार, विश्व की मुद्राओं के क्रय-विक्रय (व्यापार) का बाजार है जो विकेन्द्रित, चौबीसों घंटे चलने वाला, काउन्टर पर किया जाने अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा बाजार का महत्व वाले (over the counter) कारोबार है। अन्य वित्तीय बाजारों की अपेक्षा यह बहुत नया है और पिछली शताब्दी में सत्तर के दशक में आरम्भ हुआ। फिर भी सम्पूर्ण कारोबार की दृष्टि से यह सबसे बड़ा बाजार है। विदेशी मुद्राओं में प्रतिदिन लगभग ४ ट्रिलियन अमेरिकी डालर के तुल्य कामकाज होता है। अन्य बाजारों की तुलना में यह सबसे अधिक स्थायित्व वाला बाजार है।

1 विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार का इतिहास

2 अचल (Fixed) विदेशी मुद्रा दरें

3 चल (FLOATING) विदेशी मुद्रा दरें

4 इन्हें भी देखें

विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार का इतिहास

1970 से पहले तक विदेशी मुद्रा विनिमय दरें स्थायी रूप से तय रहा करती थीं। 70 के दशक से ही लगातार परिवर्तन होने वाली चल (FLOATING) विनिमय दरों[1] का प्रचलन शुरू हुआ।

अचल (Fixed) विदेशी मुद्रा दरें

अचल विदेशी मुद्रा दरों का चलन,विश्व युद्ध के पहले (Pre World war) समय में जारी आर्थिक भेदभाव के मुद्दों की वजह से हुआ, जहां कुछ देशों के पास दूसरे देशों की तुलना में अधिक व्यापारिक अधिकार होते थे। स्वतंत्र व्यापार को बढ़ावा देने के लिये, अलग - अलग मुद्राओं के बीच स्वतंत्र परिवर्तन का होना ज़रूरी समझा गया और इसीलिए अचल विदेशी मुद्रा दर प्रणाली अस्तित्व में आई। इससे संदर्भित नियम, 44 सहयोगी राष्ट्रों के प्रतिनिधियों के सम्मेलन में जुलाई 1944 के पहले तीन हफ्तों के दौरान तय किए गए थे। इस सम्मेलन का आयोजन, ब्रैटनवुड्स न्यू हैम्पशायर (Bretton Woods, New Hampshire, US) में किया गया था और इसलिए इस प्रणाली या नियमों को ब्रैटनवुड्स प्रणाली कहा जाता है।

चल (FLOATING) विदेशी मुद्रा दरें

चल विदेशी मुद्रा दर प्रणाली में किसी भी देश की मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन, विदेशी मुद्रा बाजार में जारी व्यापार, मांग व पूर्ति (Demand Supply) या अन्य संदर्भित कारणों की वजह से होने वाले उतार-चढ़ाव की वजह से होता रहता है।

विनिमय दर प्रणाली का महत्व और कार्यप्रणाली

विनिमय दर प्रणाली का महत्व और कार्यप्रणाली

अधिकांश विकासशील अर्थव्यवस्थाएं अपने व्यापार और चालू खातों पर घाटे को चलाने की प्रवृत्ति रखती हैं। गिरावट भारत के निर्यातकों को मदद कर सकती है - जब तक कि वे कच्चे माल का आयात नहीं करते, जो महंगा हो जाएगा।

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था

भारत जीडीपी के संदर्भ में वि‍श्‍व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है । यह अपने भौगोलि‍क आकार के संदर्भ में वि‍श्‍व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्‍या की दृष्‍टि‍ से दूसरा सबसे बड़ा देश है । हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधि‍त मुद्दों के बावजूद वि‍श्‍व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से एक के रूप में उभरा है । महत्‍वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्‍त करने की दृष्‍टि‍ से भारत सरकार द्वारा कई गरीबी उन्‍मूलन और रोजगार उत्‍पन्‍न करने वाले कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।

इति‍हास

ऐति‍हासि‍क रूप से भारत एक बहुत वि‍कसि‍त आर्थिक व्‍यवस्‍था थी जि‍सके वि‍श्‍व के अन्‍य भागों के साथ मजबूत व्‍यापारि‍क संबंध थे । औपनि‍वेशि‍क युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रि‍टि‍श भारत से सस्‍ती दरों पर कच्‍ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्‍य मूल्‍य से कहीं अधि‍क उच्‍चतर कीमत पर बेचा जाता था जि‍सके अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा बाजार का महत्व परि‍णामस्‍वरूप स्रोतों का द्धि‍मार्गी ह्रास होता था । इस अवधि‍ के दौरान वि‍श्‍व की आय में भारत का हि‍स्‍सा 1700 ए डी के 22.3 प्रति‍शत से गि‍रकर 1952 में 3.8 प्रति‍शत रह गया । 1947 में भारत के स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के पश्‍चात अर्थव्‍यवस्‍था की पुननि‍र्माण प्रक्रि‍या प्रारंभ हुई । इस उद्देश्‍य से वि‍भि‍न्‍न नीति‍यॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्‍यम से कार्यान्‍वि‍त की गयी ।

1991 में भारत सरकार ने महत्‍वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्‍तुत कि‍ए जो इस दृष्‍टि‍ से वृहद प्रयास थे जि‍नमें वि‍देश व्‍यापार उदारीकरण, वि‍त्तीय उदारीकरण, कर सुधार और वि‍देशी नि‍वेश के प्रति‍ आग्रह शामि‍ल था । इन उपायों ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को गति‍ देने में मदद अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा बाजार का महत्व की तब से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था बहुत आगे नि‍कल आई है । सकल स्‍वदेशी उत्‍पाद की औसत वृद्धि दर (फैक्‍टर लागत पर) जो 1951 - 91 के दौरान 4.34 प्रति‍शत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रति‍शत के रूप में बढ़ गयी ।

कृषि‍

कृषि‍ भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ है जो न केवल इसलि‍ए कि‍ इससे देश की अधि‍कांश जनसंख्‍या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्‍कि‍ इसलि‍ए भी भारत की आधी से भी अधि‍क आबादी प्रत्‍यक्ष रूप से जीवि‍का के लि‍ए कृषि‍ पर नि‍र्भर है ।

वि‍भि‍न्‍न नीति‍गत उपायों के द्वारा कृषि‍ उत्‍पादन और उत्‍पादकता में वृद्धि‍ हुई, जि‍सके फलस्‍वरूप एक बड़ी सीमा तक खाद्य सुरक्षा प्राप्‍त हुई । कृषि‍ में वृद्धि‍ ने अन्‍य क्षेत्रों में भी अधि‍कतम रूप से अनुकूल प्रभाव डाला जि‍सके फलस्‍वरूप सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में और अधि‍कांश जनसंख्‍या तक लाभ पहुँचे । वर्ष 2010 - 11 में 241.6 मि‍लि‍यन टन का एक रि‍कार्ड खाद्य उत्‍पादन हुआ, जि‍समें सर्वकालीन उच्‍चतर रूप में गेहूँ, मोटा अनाज और दालों का उत्‍पादन हुआ । कृषि‍ क्षेत्र भारत के जीडीपी का लगभग 22 प्रति‍शत प्रदान करता है ।

उद्योग

औद्योगि‍क क्षेत्र भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लि‍ए महत्‍वपूर्ण है जोकि‍ वि‍भि‍न्‍न सामाजि‍क, आर्थिक उद्देश्‍यों की पूर्ति के लि‍ए आवश्‍यक है जैसे कि‍ ऋण के बोझ को कम करना, वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश आवक (एफडीआई) का संवर्द्धन करना, आत्‍मनि‍र्भर वि‍तरण को बढ़ाना, वर्तमान आर्थिक परि‍दृय को वैवि‍ध्‍यपूर्ण और आधुनि‍क बनाना, क्षेत्रीय वि‍कास का संर्वद्धन, गरीबी उन्‍मूलन, लोगों के जीवन स्‍तर को उठाना आदि‍ हैं ।

स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के पश्‍चात भारत सरकार देश में औद्योगि‍कीकरण के तीव्र संवर्द्धन की दृष्‍टि‍ से वि‍भि‍न्‍न नीति‍गत उपाय करती रही है । इस दि‍शा में प्रमुख कदम के रूप में औद्योगि‍क नीति‍ संकल्‍प की उदघोषणा करना है जो 1948 में पारि‍त हुआ और उसके अनुसार 1956 और 1991 में पारि‍त हुआ । 1991 के आर्थिक सुधार आयात प्रति‍बंधों को हटाना, पहले सार्वजनि‍क क्षेत्रों के लि‍ए आरक्षि‍त, नि‍जी क्षेत्रों में भागेदारी, बाजार सुनि‍श्‍चि‍त मुद्रा वि‍नि‍मय दरों की उदारीकृत शर्तें ( एफडीआई की आवक / जावक हेतु आदि‍ के द्वारा महत्‍वपूर्ण नीति‍गत परि‍वर्तन लाए । इन कदमों ने भारतीय उद्योग को अत्‍यधि‍क अपेक्षि‍त तीव्रता प्रदान की ।

आज औद्योगि‍क क्षेत्र 1991-92 के 22.8 प्रति‍शत से बढ़कर कुल जीडीपी का 26 प्रति‍शत अंशदान करता है ।

सेवाऍं

आर्थिक उदारीकरण सेवा उद्योग की एक तीव्र बढ़ोतरी के रूप में उभरा है और भारत वर्तमान समय में कृषि‍ आधरि‍त अर्थव्‍यवस्‍था से ज्ञान आधारि‍त अर्थव्‍यवस्‍था के रूप में परि‍वर्तन को देख रहा है । आज सेवा क्षेत्र जीडीपी के लगभग 55 प्रति‍शत ( 1991-92 के 44 प्रति‍शत से बढ़कर ) का अंशदान करता है जो कुल रोजगार का लगभग एक ति‍हाई है और भारत के कुल नि‍र्यातों का एक ति‍हाई है

भारतीय आईटी / साफ्टेवयर क्षेत्र ने एक उल्‍लेखनीय वैश्‍वि‍क ब्रांड पहचान प्राप्‍त की है जि‍सके लि‍ए नि‍म्‍नतर लागत, कुशल, शि‍क्षि‍त और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलनी वाली जनशक्‍ति‍ के एक बड़े पुल की उपलब्‍धता को श्रेय दि‍या जाना चाहि‍ए । अन्‍य संभावना वाली और वर्द्धित सेवाओं में व्‍यवसाय प्रोसि‍स आउटसोर्सिंग, पर्यटन, यात्रा और परि‍वहन, कई व्‍यावसायि‍क सेवाऍं, आधारभूत ढॉंचे से संबंधि‍त सेवाऍं और वि‍त्तीय सेवाऍं शामि‍ल हैं।

बाहय क्षेत्र

1991 से पहले भारत सरकार ने वि‍देश व्‍यापार और वि‍देशी नि‍वेशों पर प्रति‍बंधों के माध्‍यम से वैश्‍वि‍क प्रति‍योगि‍ता से अपने उद्योगों को संरक्षण देने की एक नीति‍ अपनाई थी ।

उदारीकरण के प्रारंभ होने से भारत का बाहय क्षेत्र नाटकीय रूप से परि‍वर्तित हो गया । वि‍देश व्‍यापार उदार और टैरि‍फ एतर बनाया गया । वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश सहि‍त वि‍देशी संस्‍थागत नि‍वेश कई क्षेत्रों में हाथों - हाथ लि‍ए जा रहे हैं । वि‍त्‍तीय क्षेत्र जैसे बैंकिंग और बीमा का जोरदार उदय हो रहा है । रूपए मूल्‍य अन्‍य मुद्राओं के साथ-साथ जुड़कर बाजार की शक्‍ति‍यों से बड़े रूप में जुड़ रहे हैं ।

आज भारत में 20 बि‍लि‍यन अमरीकी डालर (2010 - 11) का वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश हो रहा है । देश की वि‍देशी मुद्रा आरक्षि‍त (फारेक्‍स) 28 अक्‍टूबर, 2011 को 320 बि‍लि‍यन अ.डालर है । ( 31.5.1991 के 1.2 बि‍लि‍यन अ.डालर की तुलना में )

भारत माल के सर्वोच्‍च 20 नि‍र्यातकों में से एक है और 2010 में सर्वोच्‍च 10 सेवा नि‍र्यातकों में से एक है ।

गिरते रुपये को बचाने में कैसे हो सकता है विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल, जानिए इसका कारण

विदेशी मुद्रा भंडार एक केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्राओं में आरक्षित संपत्ति (assets) है, जिसमें बाॉन्ड, ट्रेजरी बिल और अन्य सरकारी सिक्योरिटीज शामिल हो सकती हैं. विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में एक अहम भूमिका निभाता है. जब किसी भी देश की राष्ट्रीय मुद्रा तेजी से नीचे आती है तब फॉरेक्स रिजर्व उसे स्थिरता प्रदान करने में मदद करता है. यदि किसी देश के पास फॉरेक्स रिजर्व कम होता है या नहीं होता है तो वह दिवालिया हो जाता है. भारत के पास भी अच्छा विदेशी मुद्रा भंडार है. भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा संपत्ति (Foreign Currency Assets), गोल्ड रिजर्व, स्पेशल ड्राइंग राइट्स (SDR), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ रिजर्व स्थिति शामिल है. आइये एक नजर डालते हैं कि कैसे रुपये को संभालने में विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन उससे पहले जानते है इसके महत्व के बारे में - बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार का महत्व बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार भारत के बाहरी और आंतरिक वित्तीय मुद्दों के प्रबंधन में सरकार और आरबीआई को आराम देते हैं. यह आर्थिक मोर्चे पर भुगतान संतुलन (बीओपी) संकट की स्थिति में एक सहारे के रूप में कार्य करता है. भंडार बढ़ने से डॉलर के मुकाबले रुपये को मजबूत होने में मदद मिलती है. जब किसी देश की मौद्रिक प्राधिकरण (monetery authority) अपनी बाहरी देनदारियों का दायित्व अच्छे से निभाती है तो इससे बाजारों और निवेशकों में विश्वास बढ़ता है. रुपये को संभालने में विदेशी मुद्रा भंडार का कैसे इस्तेमाल होता है सिक्योरिटीज के रूप में होल्ड किया गया विदेशी मुद्रा भंडार एक देश के कई फाइनेंशियल उद्देश्यों को पूरा करता हैं, लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण है किसी भी देश की करेंसी को स्थिरता प्रदान करना. जिसके लिए सरकारें 'बैकअप फंड' तैयार रखती हैं. बैकअप फंड का इस्तेमाल किसी भी देश में उसके केंद्रीय बैंक या रेगुलेटरी संस्था द्वारा आर्थिक इमरजेंसी के समय किया जाता है. भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) है. यदि विदेशी मुद्रा की मांग में वृद्धि के कारण रुपये का मूल्य घटता है तो आरबीआई भारतीय मुद्रा बाजार में डॉलर बेचता है ताकि भारतीय मुद्रा की गिरावट के कारण की जांच कर उसकी गिरती हुई वैल्यू को रोका जा सके.

विदेशी मुद्रा भंडार एक केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्राओं में आरक्षित संपत्ति (assets) है, जिसमें बाॉन्ड, ट्रेजरी बिल और अन्य सरकारी सिक्योरिटीज शामिल हो सकती हैं. विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में एक अहम भूमिका निभाता है. जब किसी भी देश की राष्ट्रीय मुद्रा तेजी से नीचे आती है तब फॉरेक्स रिजर्व उसे स्थिरता प्रदान करने में मदद करता है.

यदि किसी देश के पास फॉरेक्स रिजर्व कम होता है या नहीं होता है तो वह दिवालिया हो जाता है. भारत के पास भी अच्छा विदेशी मुद्रा भंडार है. भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा संपत्ति (Foreign Currency Assets), गोल्ड रिजर्व, स्पेशल ड्राइंग राइट्स (SDR), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ रिजर्व स्थिति शामिल है.

आइये एक नजर डालते हैं कि कैसे रुपये को संभालने में विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन उससे पहले जानते है इसके महत्व के बारे में -

बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार भारत के बाहरी और आंतरिक वित्तीय मुद्दों के प्रबंधन में सरकार और आरबीआई को आराम देते हैं. यह आर्थिक मोर्चे पर भुगतान संतुलन (बीओपी) संकट की स्थिति में एक सहारे के रूप में कार्य करता है. भंडार बढ़ने से डॉलर के मुकाबले रुपये को मजबूत होने में मदद मिलती है. जब किसी देश की मौद्रिक प्राधिकरण (monetery authority) अपनी बाहरी देनदारियों का दायित्व अच्छे से निभाती है तो इससे बाजारों और निवेशकों में विश्वास बढ़ता है.

सिक्योरिटीज के रूप में होल्ड किया गया विदेशी मुद्रा भंडार एक देश के कई फाइनेंशियल उद्देश्यों को पूरा करता हैं, लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण है किसी भी देश की करेंसी को स्थिरता प्रदान करना. जिसके लिए सरकारें 'बैकअप फंड' तैयार रखती हैं.

बैकअप फंड का इस्तेमाल किसी भी देश में उसके केंद्रीय बैंक या रेगुलेटरी संस्था द्वारा आर्थिक इमरजेंसी के समय किया जाता है. भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) है. यदि विदेशी मुद्रा की मांग में वृद्धि के कारण रुपये का मूल्य घटता है तो आरबीआई भारतीय मुद्रा बाजार में डॉलर बेचता है ताकि भारतीय मुद्रा की गिरावट के कारण की जांच कर उसकी गिरती हुई वैल्यू को रोका जा सके.

विदेशी मुद्रा बाज़ार

सूची विदेशी मुद्रा बाज़ार

विदेशी मुद्रा बाजार, विश्व की मुद्राओं के क्रय-विक्रय (व्यापार) का बाजार है जो विकेन्द्रित, चौबीसों घंटे चलने वाला, काउन्टर पर किया जाने वाले (over the counter) कारोबार है। अन्य वित्तीय बाजारों की अपेक्षा यह बहुत नया है और पिछली शताब्दी में सत्तर के दशक में आरम्भ हुआ। फिर भी सम्पूर्ण कारोबार की दृष्टि से यह सबसे बड़ा बाजार है। विदेशी मुद्राओं में प्रतिदिन लगभग ४ ट्रिलियन अमेरिकी डालर के तुल्य कामकाज होता है। अन्य बाजारों की तुलना में यह सबसे अधिक स्थायित्व वाला बाजार है। .

भारतीय वित्तीय प्रणाली

भारतीय मुद्रा किसी भी देश की वित्तीय प्रणाली वित्तीय बाजार, वित्तीय मध्यस्थता और वित्तीय साधनों या वित्तीय उत्पादों के होते हैं। यह पत्र वित्त और भारतीय वित्तीय प्रणाली और वित्तीय बाजार, वित्तीय मध्यस्थों और वित्तीय साधनों पर ध्यान केंद्रित का अर्थ पर चर्चा करता है। विभिन्न मुद्रा बाजारलिखतों पर संक्षिप्त समीक्षा भी इस अध्ययन में शामिल रहे हैं। शब्द 'वित्त' हमारी साधारण समझ में यह समकक्ष 'मनी' के रूप में माना जाता है। हम पैसे और अर्थशास्त्र में बैंकिंग के बारे में, मौद्रिक सिद्धांत और व्यवहार के बारे में और 'सार्वजनिक वित्त' के बारे में पढ़ें। लेकिन वित्त बिल्कुल पैसे नहीं है, यह एक विशेष गतिविधि के लिए धन उपलब्ध कराने का स्रोत है। इस प्रकार सार्वजनिक वित्त सरकार के साथ पैसे मतलब यह नहीं है, लेकिन यह एक सरकार के कार्यों और गतिविधियों के लिए राजस्व बढ़ाने के स्रोतों को संदर्भित करता है। यहाँ कुछ शब्द की परिभाषा का दोनों एक स्रोत के रूप में और के रूप में एक गतिविधि के एक संज्ञा और एक क्रिया के रूप में यानी वित्त'। .

आर्थिक विकास

देशों, क्षेत्रों या व्यक्तिओं की आर्थिक समृद्धि के वृद्धि को आर्थिक विकास कहते हैं। नीति निर्माण की दृष्टि से आर्थिक विकास उन सभी प्रयत्नों को कहते हैं जिनका लक्ष्य किसी जन-समुदाय की आर्थिक स्थिति व जीवन-स्तर के सुधार के लिये अपनाये जाते हैं। वर्तमान युग की सबसे महत्वपूर्ण समस्या 'आर्थिक विकास' की समस्या है। आर्थिक स्वतन्त्रता के बिना राजनैतिक स्वतन्त्रता का कोई महत्व (उपयोग) नहीं है। विकास और उससे जुड़े हुए मुद्दों के इस महत्व के कारण ही अर्थशास्त्र के क्षेत्र में विकास-अर्थशास्त्र नामक एक अलग विषय का ही उदय हो गया। किन्तु पिछले कुछ वर्षों से विकास-अर्थशास्त्र के एक स्वतंत्र विषय के रूप में अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न-सा उभरता दिखाई दे रहा है। कई अर्थशास्त्री हैं जो "विकास-अर्थशास्त्र" नामक अलग विषय की आवश्यकता से ही इनकार करने लगे हैं, इनमें प्रमुख हैं- स्लट्ज, हैबरलर, बार, लिटिल, वाल्टर्स आदि। अर्थशास्त्रियों का एक वर्ग "विकास-अर्थशास्त्र" को ही समाप्त कर देने की मांग करने लगा है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने 'आर्थिक विकास' (इकनॉमिक अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा बाजार का महत्व डेवलपमेन्ट), 'आर्थिक प्रगति' (इकनॉमिक ग्रोथ) और दीर्घकालीन परिवर्तन (सेक्युलर डेवलपमेन्ट) की अलग-अलग परिभाषाएँ की हैं। किन्तु मायर और बोल्डविन ने इन तीनों श्ब्द-समूहों का एक ही अर्थ में प्रयोग किया है तथा अलग-अलग अर्थ निकालने को 'बाल की खाल निकालना' कहा है। उनके अनुसार, .

अर्थशास्त्र

---- विश्व के विभिन्न देशों की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर (सन २०१४) अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। 'अर्थशास्त्र' शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है - 'धन का अध्ययन'। किसी विषय के संबंध में मनुष्यों के कार्यो के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थसंबंधी कायों का क्रमबद्ध ज्ञान होना आवश्यक है। अर्थशास्त्र का प्रयोग यह समझने के लिये भी किया जाता है कि अर्थव्यवस्था किस तरह से कार्य करती है और समाज में विभिन्न वर्गों का आर्थिक सम्बन्ध कैसा है। अर्थशास्त्रीय विवेचना का प्रयोग समाज से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे:- अपराध, शिक्षा, परिवार, स्वास्थ्य, कानून, राजनीति, धर्म, सामाजिक संस्थान और युद्ध इत्यदि। प्रो.

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