मसालों के बगैर भारतीय व्यंजन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

आइए! हेलमेट के साथ सड़क सुरक्षा के शीर्ष पर रहें

A family of five ride on a bike at a market in Rajasthan, India.

दक्षिण एशिया की सड़कों पर यह एक बहुत ही जाना-पहचाना नजारा है कि - एक पूरा परिवार एक मोटरबाइक पर बेतरतीब ढंग से बैठा है – भीड़ के बीच अपना रास्ता बनाते हुए पिता एक बच्चे को सामने बैलेंस कर रहा है और मां दूसरे बच्चे को अपनी गोद में चिपकाए हुए है। कोई गंभीर दुर्घटना होने की स्थिति में तीव्र और भारी मोटर वाहनों के बीच यह परिवार बेहद खतरे में होता है। इसके अलावा, अक्सर चालक ही हेलमेट पहनने वाला एकमात्र सवार होता है, और परिवार के अन्य लोग असुरक्षित रह जाते हैं।

दुनिया भर में अन्य सड़क यातायात दुर्घटनाओं की तुलना में दोपहिया दुर्घटनाओं में मृत्यु दर सबसे अधिक है। द क्षिण एशिया में स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है, जहां प्रति व्यक्ति मोटरीकरण दर कारों से कहीं अधिक होने के साथ मोटर चालित दोपहिया वाहनों की संख्या कुल वाहनों के 70% तक है। प्रति किमी यात्रा के आधार पर मोटर चालित दोपहिया वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना भी कारों की तुलना में 30 गुना अधिक है।

वैश्विक वाहन बेड़े में केवल 10% हिस्सा रखने वाले दक्षिण एशिया की, प्रति वर्ष सड़क दुर्घटना में मृत्यु के संदर्भ में, 25% हिस्सेदारी है, और इस क्षेत्र में दुर्घटना में होने वाली 40 प्रतिशत मौतें दोपहिया वाहनों की दुर्घटनाओं में होती हैं। पीड़ितों में से अधिकांश निम्न आय परिवारों और युवा यात्रियों सहित कमजोर सड़क उपयोगकर्ता होते हैं, जिनकी अक्सर चिकित्सा और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों तक पर्याप्त पहुंच नहीं होती। इसलिए दुर्घटना का बोझ न केवल पीड़ित को, बल्कि पूरे परिवार को भी सामना करना पड़ता है जो आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहा है।

यह एक भयावह मानवीय त्रासदी होने के अलावा, एक विकास चुनौती भी है जो स्वास्थ्य, आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण को प्रभावित करती है।

सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश रखना

अच्छी खबर यह है कि इन दोपहिया वाहन दुर्घटना मौतों में से बाजार के अनुरूप रहें कई को एक सरल समाधान : सभी सवारों के पहनने के लिए प्रमाणित हेलमेट का उचित उपयोग - के जरिए रोका जा सकता है, और जख्मों को कम किया जा सकता है।

हालांकि, विकासशील देशों के अनुभव बताते हैं कि हेलमेट सुरक्षा पर पूर्ण अमल करना जटिल है और इसके लिए विभिन्न हितधारकों के साथ समन्वित बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

परिणामस्वरूप, दक्षिण एशिया में उपलब्ध अधिकांश हेलमेट की गुणवत्ता पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने की नहीं होंगी। और जो गुणवत्ता मानकों को पूरा करते हैं, वे बहुत महंगे हैं और गर्म एवं आर्द्र जलवायु के अनुरूप डिज़ाइन नहीं किए गए हैं।

समय की मांग है कि हर देश कानून, प्रवर्तन, उपलब्धता और जागरूकता सहित इनके विभिन्न पहलुओं की व्यापक जांच करे और सभी हितधारकों की भागीदारी के साथ हेलमेट सुरक्षा के लिए एक अनुरूप और प्रभावी रणनीति विकसित करे।

Helmet Safety Interventions Across South Asia

दक्षिण एशिया के देशों को कानून, प्रवर्तन, उपलब्धता और जागरूकता सहित हेलमेट सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं की व्यापक जांच करने और एक अनुरूप एवं प्रभावी रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है।

सुरक्षित कल की राह पर

विश्व बैंक और सड़क सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष दूत के कार्यालय ने हाल ही में पूरे दक्षिण एशिया में संयुक्त राष्ट्र-मानक हेलमेट की पैरवी करते हुए, सुरक्षित और किफायती हेलमेट कार्यक्रम शुरू करने के लिए हाथ मिलाया है।

यह पहल दक्षिण एशियाई देशों के भीतर इन मानक गुणवत्ता वाले हेलमेटों का उत्पादन करने के लिए स्थानीय कंपनियों की क्षमता, और संयुक्त राष्ट्र-मानक हेलमेट का उत्पादन या आयात करने के लिए स्थानीय निर्माताओं को प्रोत्साहित करने के अवसर तलाश रही है।

हाल ही में, हमने अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों का अनुपालन करने वाले हेलमेट वितरित करने के लिए सरकारों और स्थानीय हितधारकों के साथ साझेदारी करते हुए, ढाका और काठमांडू में सुरक्षित और किफ़ायती हेलमेट कार्यक्रम शुरू किया। इन आयोजनों ने विभिन्न हितधारकों के बीच जागरूकता बढ़ाकर, युवाओं के बीच सुरक्षित व्यवहार को बढ़ावा देकर और महत्वपूर्ण सड़क सुरक्षा चुनौतियों एवं समाधानों को उजागर करके, संयुक्त राष्ट्र-मानक हेलमेट की पैरवी करने के महत्व को मजबूत किया है। हम बेहतर हेलमेट मानकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में स्थानीय निर्माताओं के उत्साह को देखकर विशेष रूप से प्रभावित हुए।

Elements of a Full Face Motorcycle Helmet

हमें अभी लंबी दूरी तय करनी है। यदि हमें 2030 तक सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों की संख्या को आधा करने और सभी को सुरक्षित, किफायती और टिकाऊ परिवहन प्रदान करने के दृष्टिकोण को प्राप्त करना है, तो हमें कई क्षेत्रों : सरकार, कानून प्रवर्तन, निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और विकास भागीदार - में एक समन्वित प्रयास की आवश्यकता है।

अब कार्रवाई का समय है। साथ मिलकर, हम सड़क सुरक्षा में इस वैश्विक संकट को कम कर सकते हैं, और एक दिन, पूरे दक्षिण एशिया की सड़कों पर लागू किए गए ध्वनि सुरक्षा उपायों के कारण किसी की जान नहीं जाने की स्थिति हासिल करने तक पहुंच सकते हैं।

किस प्रकार के इक्विटी फंड में सबसे कम और किसमें सबसे ज़्यादा जोखिम होता है?

किस प्रकार के इक्विटी फंड में सबसे कम और किसमें सबसे ज़्यादा जोखिम होता है?

म्युचुअल फंड्स में कैटिगराइजेशन और उनमें मौजूद पोर्टफोलियो के आधार पर कई तरह के जोखिमों की आशंका रहती है। इक्विटी म्युचुअल फंड्स में कई जोखिमों की आशंका रहती है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है बाजार जोखिम। एक कैटेगरी के तौर पर इक्विटी म्युचुअल फंड्स को 'उच्च जोखिम' निवेश उत्पाद माना जाता है। जबकि सारे इक्विटी फंड्स को बाजार जोखिमों का खतरा रहता है, जोखिम की डिग्री अलग-अलग फंड में अलग-अलग होती है और इक्विटी फंड के प्रकार पर निर्भर करती है।

लार्जकैप फंड्स जो लार्जकैप कंपनी के शेयरों में निवेश करते हैं यानी अच्छी आर्थिक स्थिति वाली जानी-मानी कंपनियों के शेयरों को सबसे कम जोखिम भरा माना जाता है क्योंकि इन शेयरों को मिड कैप और छोटी कंपनियों के शेयरों की तुलना में सुरक्षित माना जाता है। कम जोखिम वाले इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में आमतौर पर एक अच्छा डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो होता है जो लार्ज-कैप कैटेगरी के सारे सेक्टरों में फैला होता है। व्यापक-आधारित बाजार सूचकांक पर आधारित इंडेक्स फंड्स और ETF जो निष्क्रिय रणनीति रखते हैं, उन्हें भी कम जोखिम वाला माना जाता है क्योंकि वे डाइवर्सिफाइड बाजार सूचकांकों की नकल करते हैं।

फोकस्ड फंड्स, सेक्टोरल फंड्स और थीमैटिक फंड्स जोखिम स्पेक्ट्रम के दूसरे छोर पर होते हैं क्योंकि उनके पास केंद्रित पोर्टफोलियो होता है। उच्च जोखिम वाले इक्विटी फंड्स बाजार के अनुरूप रहें आमतौर पर एक या दो सेक्टरों तक सीमित अपनी होल्डिंग्स के कारण केंद्रित जोखिम से गुजरते हैं। भले ही फोकस्ड फंड्स जाने-माने लार्ज-कैप शेयरों में निवेश करते हैं, लेकिन उनके पास आमतौर पर सिर्फ 25-30 शेयर होते हैं जो केंद्रित जोखिम को बढ़ाते हैं। अगर फंड मैनेजर का अनुमान सही हो जाता है, तो वह डाइवर्सिफाइड लार्ज-कैप फंड की तुलना में ज़्यादा रिटर्न दे सकता है लेकिन इसका उल्टा भी हो सकता है।

सेक्टोरल फंड्स ऑटो, FMCG या IT जैसे सिंगल सेक्टर के शेयरों में निवेश करते हैं और इसलिए काफ़ी जोखिम उठाते हैं क्योंकि इंडस्ट्री को प्रभावित करने वाली कोई भी अनचाही घटना पोर्टफोलियो के सभी शेयरों पर बुरा प्रभाव डालेगी। थीमैटिक फंड्स कुछ संबंधित इंडस्ट्री के शेयरों में निवेश करते हैं जो फिलहाल मांग में हैं लेकिन लंबी अवधि में आकर्षण खो सकते हैं।

निवेशक आमतौर पर एक आम धारणा रखते हैं कि इक्विटी फंड्स दूसरे फंडों की तुलना में ज़्यादा रिटर्न देते हैं, लेकिन उन्हें यह बात पता होनी चाहिए कि सभी इक्विटी फंड्स एक समान नहीं होते हैं। रिटर्न की संभावनाएं उनके इक्विटी फंड के रिस्क प्रोफाइल के अनुरूप होती हैं। इसलिए इसमें निवेश करने का फैसला लेने से पहले किसी भी केंद्रित जोखिम के लिए सारे सेक्टरों और टॉप होल्डिंग्स में फंड की विविधता की डिग्री देखें। सबसे कम जोखिम वाले या सबसे ज़्यादा रिटर्न वाले फंड्स देखने के बजाय, आपको ऐसा फंड देखना चाहिए जिसका जोखिम स्तर आप उठा सकते हैं।

दाना-पानी: मसालों की महक

अगर मसालों का सही अनुपात में और सही तरीके से उचित मौसम में व्यवहार किया जाए, तो इनके गुण बहुत हैं। इस बार बात करते हैं मसाले बनाने की।

दाना-पानी: मसालों की महक

मसालों के बगैर भारतीय व्यंजन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

मानस मनोहर

भारतीय रसोई में मसालों की बड़ी अहमियत है। मसालों के बगैर भारतीय व्यंजन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हर प्रांत में अलग-अलग व्यंजन के लिए अलग-अलग मसाले हैं और प्राय: हर किसी का मसाले बनाने का तरीका अलग है। मसाले न सिर्फ भोजन का स्वाद बढ़ाते हैं, बल्कि ये औषधि का भी काम करते हैं। अगर मसालों का सही अनुपात में और सही तरीके से उचित मौसम में व्यवहार किया जाए, तो इनके गुण बहुत हैं। इस बार बात करते हैं मसाले बनाने की।

आमतौर पर लोग आजकल बने-बनाए मसाले व्यवहार करते हैं। पहले जब बाजार में पिसे हुए मसाले उपलब्ध नहीं हुआ करते थे, तो गृहिणियां खुद सिलबट्टे पर मसाले पीस कर उनका भोजन में इस्तेमाल किया करती थीं। इस तरह रोज एक तरह से नया मसाला तैयार होता था। इस तरह हर रोज भोजन का स्वाद कुछ नया हुआ करता था। आज भी ग्रामीण इलाकों में प्राय: मसाले सिलबट्टे पर ही पीस कर बनाए जाते हैं। पर शहरों में ऐसा रोज संभव नहीं हो पाता। इसलिए अधिकतर लोग बाजार का पिसा मसाला इस्तेमाल करते हैं। मांग के अनुरूप अब मसाले बनाने वाली अनेक कंपनियां बाजार में उतर आई हैं। मगर फिर भी कई लोगों को बाजार के मसालों में वह लज्जत नहीं आ पाती, जो लोगों को चाहिए होती है। इसलिए क्यों न मसाले भी घर में ही तैयार करें और हर बार नया प्रयोग कर अपने भोजन का जायका बदलते-बढ़ाते रहें। घर के बने मसाले के खराब होने का डर भी नहीं होता। इसलिए कुछ मसाले बनाना जानते हैं।

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सब्जी मसाला
घरों में सबसे अधिक अगर किसी मसाले की खपत होती है, तो वह है सब्जी मसाला। सब्जी मसाला घर में बनाना बहुत आसान है। बस बाजार से कुछ खड़े मसाले ले आएं और उन्हें मिला कर एक साथ पीस लें, सब्जी मसाला तैयार हो जाता है। बाजार में मिलने वाले सब्जी मसाले में कोई धनिया पाउडर नहीं मिलाता, तो कोई जीरा नहीं मिलाता, कोई लाल मिर्च नहीं डालता, तो कोई काली मिर्च। क्योंकि कई लोग इन्हें अलग से इस्तेमाल करते हैं। पर आप चूंकि खुद मसाला तैयार कर रहे हैं, तो सारी चीजें एक साथ इस्तेमाल करें, ताकि अलग से कुछ भी डालने की जरूरत न पड़े। इसमें अपने स्वाद के मुताबिक लाल मिर्च और काली मिर्च की मात्रा रख सकते हैं।

सब्जी मसाला बनाने के बाजार के अनुरूप रहें लिए साबुत धनिया, जीरा, मेथी दाना, सौंफ, अजवाइन, काली मिर्च, लाल मिर्च, हल्दी, राई, सोंठ, तेजपत्ता, चकरी फूल, जायफल, दालचीनी, अमचूर, छोटी और बड़ी इलाइची और लौंग का उपयोग किया जाता है। ये सारी चीजें एक प्रकार से औषधि के रूप में भी उपयोग होती हैं, इसलिए सब्जी में इन्हें खाना सेहत की दृष्टि से बहुत फायदेमंद है। सब्जी मसाला बनाने के लिए सबसे जरूरी चीज है इन सारी चीजों की मात्रा के बारे में जान लेना। अगर धनिया आपने सौ ग्राम लिया है, तो इतनी ही मात्रा में जीरा और अजवाइन भी लें। इसकी आधी मात्रा लाल मिर्च और तेजपत्ता की रखें। चौथाई मात्रा हल्दी, काली मिर्च, राई, सौंफ, बड़ी-छोटी इलाइची और मेथी दाने की रखें। चौथाई से भी कम मात्रा में चकरी फूल, दालचीनी, सोंठ, अमचूर और जायफल का रखें। इन सारी चीजों को पहले अच्छी तरह धूप में सुखा लें। अगर धूप में न सुखा सकें, तो गरम तवे पर थोड़ी देर के लिए रख कर उतार लें, ताकि इनकी अतिरिक्त नमी निकल जाए। इन्हें भूनना नहीं है। फिर ग्राइंडर में थोड़ा-थोड़ा डाल कर पीस लें। सब्जी मसाला तैयार है। अगली बार अगर इनमें से किसी की मात्रा कम या अधिक लगती है, तो उसे घटा-बढ़ा सकते हैं।

सांभर मसाला
सांभर दक्षिण भारत का खाद्य है, पर अब यह देश के अन्य हिस्सों में भी काफी लोकप्रिय है। इसलिए लोग अक्सर घर में सांभर बनाते हैं। पर इसके लिए उन्हें मसाले बाजार से ही खरीदना पड़ता है। पर शिकायत रहती है कि वैसा सांभर नहीं बन पाया, जैसा रेस्तरां में मिलता है। सो, क्यों न घर में ही सांभर मसाला भी बनाना सीख लें। सांभर मसाला बनाने के लिए चना दाल, कढ़ी पत्ता, धनिया, जीरा, हल्दी, काली मिर्च, लाल मिर्च, राई, अमचूर, दालचीनी, मेथी दाना, हल्दी और नारियल बुरादे की जरूरत पड़ती है।

एक कप सूखा धनिया, बारह-पंद्रह कढ़ी पत्ते, एक चम्मच चना दाल, आधा कप जीरा और लाल मिर्च, बीस-पच्चीस काली मिर्चें, एक चम्मच मेथी दाना, आधा चम्मच राई, एक चम्मच अमचूर, दो चम्मच या तीन-चार गांठें हल्दी की और दो चम्मच नारियल का बुरादा लें। पहले चना दाल को सुनहरा होने तक भून लें। कढ़ी पत्ते को भी सूखने तक सेंक लें और फिर बाकी सामग्री को हल्का सेंक लें फिर सारी चीजों को एक साथ ग्राइंडर में पीस लें। सांभर मसाला तैयार है।

चाट मसाला
चाट मसाला चूंकि खाने में चटपटा होता है, इसलिए इसे चाट मसाला कहते हैं। इसे घर पर बहुत आसानी से बनाया जा सकता है। इसे बनाने के लिए पचास ग्राम साबुत धनिया, इतनी ही मात्रा में जीरा और अजवाइन लें। पच्चीस ग्राम लाल मिर्च, दस ग्राम काली मिर्च, एक से डेढ़ चुटकी हींग, करीब बीस ग्राम अमचूर, दस ग्राम टाटरी और सवा सौ ग्राम काला नमक, सौ ग्राम सफेद नमक लें।

पहले धनिया, जीरा, अजवाइन, लाल मिर्च और काली मिर्च को गरम तवे पर रख कर उसकी नमी निकाल लें। फिर ठंडा होने दें। अब सारे मसालों को एक साथ डाल कर ग्राइंडर में महीन पीस लें। इसे महीन छन्नी से छान कर मोटे हिस्से को अलग कर लें। चाट मसाला तैयार है। इसे बंद डिब्बे में रखें ताकि नमी न घुसने पाए और जब जरूरत हो, इस्तेमाल करें।

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विदेशी मांग के अनुरूप अब खेती करेंगे बिहार के किसान, डॉलर में होगी फसल से कमाई, जानें सरकार की तैयारी

बिहार में किसानों के अच्छे दिन आएंगे. सरकार इसे लेकर अब नयी तैयारी कर रही है. किसानों को खेती के दौरान आने वाली बड़ी समस्याओं में एक उनके फसल को बाजार में सही कीमत नहीं मिल पाना भी है. जिसका समाधान भी अब जल्द निकल सकता है. राज्य के किसान अब स्टार्टअप और एग्रोपेन्योर बनने की तकनीक से अवगत कराये जायेंगे. उन्हें अब विदेशों में फसल निर्यात करने के बारे में जानकारी दी जायेगी. जिसकी मॉनिटरिंग बिहार कृषि विश्वविद्यालय करेगा.

सांकेतिक फोटो

बिहार में किसानों के अच्छे दिन आएंगे. सरकार इसे लेकर अब नयी तैयारी कर रही है. किसानों को खेती के दौरान आने वाली बड़ी समस्याओं में एक उनके फसल को बाजार में सही कीमत नहीं मिल पाना भी है. जिसका समाधान भी अब जल्द निकल सकता है. राज्य के किसान अब स्टार्टअप और एग्रोपेन्योर बनने की तकनीक से अवगत कराये जायेंगे. उन्हें अब विदेशों में फसल निर्यात करने के बारे में जानकारी दी जायेगी. जिसकी मॉनिटरिंग बिहार कृषि विश्वविद्यालय करेगा.

बिहार के किसानों को अब बेहद कम रुपयों में अपने मेहनत-पसीने से उपजाये फसल को बेचने से मुक्ति मिलेगी. अब वो व्यापारियों से डॉलर में सौदा कर अपने फसलों को बेच पायेंगे. सरकार उन्हें इसके लिए ट्रेनिंग भी दिलवाने जा रही है ताकि वो निर्यात के तरीकों को जान सकें. यह जिम्मेदारी राज्य के कृषि विज्ञान केंद्रों को दी गई है. जिसकी निगरानी बिहार कृषि विश्विद्यालय करेगा.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एपीडा ने बिहार कृषि विश्विद्यालय को एक पत्र भेजा है.जिसमें इसकी तैयारी का निर्देश दिया गया है. सभी केवीके को किसानों और वैज्ञानिकों के साथ सरकार के बीच कड़ी बनने की सलाह दी गई है. किसानों को निर्यात और सप्लाई चेन की जानकारी दी जायेगी. उन्हें अंतराष्ट्रीय बाजार के भी बारे में बताया जायेगा.

बिहार के सभी मेडिकल कॉलेज व अस्पतालों में बनेगा लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट, जानें सरकार की पूरी तैयारी

बिहार के सभी मेडिकल कॉलेज व अस्पतालों में बनेगा लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट, जानें सरकार की पूरी तैयारी

बिहार के किसानों को विदेश में कृषि क्षेत्रों की मांग के अनुरूप फसल उपजाने के बारे में प्रेरित किया जायेगा. उन्हें स्टार्टअप और एग्रीपेन्योर बनाने की तकनीक से अवगत कराया जायेगा. सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर बाजार के अनुरूप रहें ये प्रयास कर रही है. इस क्रम में किसानों के फसलों का उत्पादन बढ़ाने से लेकर उसके मार्केटिंग को भी ध्यान में रखा गया है.प्रदेश की कई फसलों की मांग दूसरे देशों में भी की जाती है. लेकिन यहां के किसानों को इसके अहमियत अभी नहीं पता चल सके हैं. जिसके कारण उनकी रुची अभी बड़े स्तर पर नहीं जग सकी है. विदेशी मांग के अनुरूप अब खेती करेंगे बिहार के किसान तथा Hindi News से अपडेट के लिए बने रहें।

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